दो लोगों से पूछा गया वे साथ में क्या बना रहे हैं । एक ने कहा वह एक गराज, दूसरे ने कहा वह एक बड़ा चर्च बना रहा है । एक दिन बाद केवल एक व्यक्ति ईंट लगाते दिखा। यह पूछने पर दूसरा कहाँ है, उत्तर मिला, “ओह, उसको काम से निकाल दिया गया । वह गराज की जगह बड़ा चर्च बनाने पर अड़ा था ।

इसी के समान बाबुल के प्राचीन कार्यस्थल पर हुआ था । कुछ लोगों ने एक शहर और एक गगनचुम्बी मिनार बनाने का निर्णय किया जो उनके संसार को एक कर देता(उत्प. 11:4) । किन्तु परमेश्वर नहीं चाहता था कि वे एक भव्य, आत्म-केन्द्रित योजना पर इस विचार से काम करें कि वे परमेश्वर की ऊँचाई तक बढ़कर अपनी सब समस्याएँ हल कर लें। इसलिए वह नीचे आकर, उस प्रोजेक्ट को बन्द कर लोगों को “सारी पृथ्वी के पर फैला दिया,” और उन्हें विभिन्न भाषाएँ दीं(पद. 8-9)।

परमेश्वर चाहता था कि लोग उसे अपनी सभी समस्याओं का हल माने, और उसने अब्राहम के द्वारा अपनी योजना उन्हें दी(12:1-3) । अब्राहम और उसके वंश के विश्वास द्वारा, वह संसार को दिखाता कि किस तरह वे एक शहर को देख सकते थे जिसका “रचनेवाला और बनानेवाला परमेश्वर” है(इब्रा. 11:8-10) ।

हमारा विश्वास हमारे अपने सपनों एवं समाधान से नहीं आता हैं । विश्वास का बुनियाद परमेश्वर में और हमारे लिए उसके कार्य में है ।