आर्मी के एक अधिकारी के पास समस्त योजना हो सकती है, किन्तु प्रत्येक युद्ध के पूर्व उसे नये निर्देश लेने और देने पड़ते हैं । इस्राएलियों का अगुवा, यहोशू, को अपना पाठ सीखना था । परमेश्वर के लोगों द्वारा बियाबान में 40 वर्ष बिताने के बाद, परमेश्वर ने उन्हें प्रतिज्ञात देश में ले जाने के लिए यहोशू को चुना ।

पहला गढ़ जिसका उन्होंने सामना किया यरीहो शहर था । युद्ध के पूर्व, यहोशू ने “यहोवा की सेना का प्रधान”(सम्भवतः स्वयं प्रभु) को अपने हाथ में नंगी तरवार लिए हुए अपने सामने खड़ा देखा । यहोशू मूँह के बल गिरकर दण्डवत किया । अर्थात्, उसने परमेश्वर की महानता और अपनी नगण्ता देखी । तब उसने पूछा, “अपने दास के लिए मेरे प्रभु की क्या आज्ञा है?”(यहोशू 5:14) । यहोशू ने प्रभु का निर्देश मानकर यरीहो में विजय पायी ।

एक और अवसर, हालाँकि, यहोशू और उसके लोगों ने “यहोवा से ….सलाह {नहीं} लिए”(9:14)। परिणामस्वरूप, उन्होंने कनान के शत्रुओं, गिबोनी लोगों से शान्ति समझौता करने का धोखा खाया । इससे परमेश्वर अप्रसन्न हुआ(पद.3-26) ।

जीवन के संघर्षों का सामना करते हुए हम भी परमेश्वर पर निर्भर हैं । उसकी इच्छा है कि हम उसके पास आज दीनता से आएँ । और वह कल भी हमारे साथ होगा ।