जूलाई 28, 2014, प्रथम विश्व युद्ध के आरम्भ का वर्षगाँठ था । ब्रिटिश मिडिया में अनेक चर्चाएँ एवं विृत्तचित्रों ने उस 4 वर्ष की लड़ाई के आरम्भ को याद किया । टी.वी. कार्यक्रम मिस्टर सेलफ्रिज भी, जो लंडन के एक वास्तविक डिर्पाटमेन्टल स्टोर पर आधारित है, ने 1914 में तैयार एक एपिसोड दिखाया जिसमें युवकों को सेना में भर्ती होने के लिए पंक्ति में खडे दिखाया गया था । जब मैं आत्म-बलिदान के इन निरूपणों को देख रहा था, मैं घबरा गया । दिखाई देनेवाले सैनिक इतने कम उम्र के, इतने उत्साहित, और खंदक की विभीषिका से शायद ही लौटनेवाले थे ।

यद्यपि यीशु एक सांसारिक शत्रु को पराजित करने हेतु युद्ध में नहीं गया, वह अवश्य ही अन्तिम शत्रु-पाप एवं मृत्यु-को हराने क्रूस तक गया । यीशु परमेश्वर के प्रेम को कार्य रूप में दर्शाने और भयानक मृत्यु सहने पृथ्वी पर आया ताकि हमारे पाप क्षमा हो सकें। और वह अपने सतानेवालों और उसे क्रूसित करनेवालों को क्षमा करने हेतु भी तैयार था(लूका 23:34)। उसने पुनरुत्थान द्वारा मृत्यु को पराजित किया और अब हम परमेश्वर के अनन्त परिवार के सदस्य बन सकते हैं(यूहन्ना 3:13-16)।

वर्षगाँठ एवं स्मारक हमें विशेष ऐतिहासिक अवसरों एवं वीरतापूर्ण कार्यों की ताकीद देते हैं । क्रूस यीशु की मृत्यु की पीड़ा और हमारे उद्धार हेतु उसके बलिदान की सुन्दरता का स्मरण करते हैं ।