विशाल पर्दे पर क्लोज़-अप चित्र बड़ा और स्पष्ट था, जिससे हमें उस व्यक्ति के शरीर के गहरे घाव दिख रहे थे । एक सैनिक ने उसे मारा जबकि एक क्रुद्ध भीड़ उसपर हँस रही थी जिसका चेहरा खून से ढका था। दृश्य इतना वास्तविक था कि, उस खुले थियेटर की शान्ति में, मैं घबराया और कुंचित हुआ जैसे मैंने दर्द महसूस किया । किन्तु यह यीशु के दुःख पर एक फिल्म थी ।
हमें यीशु का दुःख याद दिलाते हुए, पतरस लिखता है, “क्योंकि मसीह …. दुःख उठाकर तुम्हें एक आदर्श दे गया है कि तुम भी उसके पद-चिह्नों पर चलो”(1 पत. 2:21) । जबकि दुःख विभिन्न प्रकार और तीव्रता में आता है जैसे पौलुस ने अनुभव किया, जो बेंतों से पीटा गया, पत्थरवाह किया गया, और जिसका जहाज टूट गया । उसे डाकुओं ने घेरा, और वह भूखा और प्यासा रहा(2 कुरिं.11:24-27) । उसी तरह, हम उनकी तरह दुःख नहीं उठाएंगे जो उन संस्कृतियों में दुःख सहते हैं जहाँ मसीहियत अस्वीकार्य है ।
अपना इन्कार करने पर, उत्पीड़न और अपमान सहने पर और प्रभु का अनादर करनेवाली गतिविधियों से दूर रहने पर किसी न किसी प्रकार, हालाँकि, दुःख हमारे सामने आएंगे। अच्छा सम्बन्ध बनाने हेतु धीरज धरना, बदला न लेना, और दूसरों को क्षमा करना भी उसके पद-चिह्नों पर चलना है ।
दुःख से गुजरते समय, हमारे लिए यीशु के कार्य को स्मरण करें।