नैतिकवादियों की प्रार्थना “दर्शन की घाटी” पापी और पवित्र परमेश्वर के बीच की दूरी बताती है । मनुष्य परमेश्वर से कहता है, “आप मुझे पाप के पहाड़ों से घिरे दर्शन की घाटी में ले आए हैं ….; जहाँ से मैं आपकी महिमा देखता हूँ ।” अपनी गलतियों से अवगत्, मनुष्य आशावादी है । वह आगे कहता है, “गहरे कूँओं से वरन् अति गहरे कूँओं से भी तारे दिखते और तेज चमकते हैं ।” अन्ततः कविता एक आग्रह से समाप्त होती है: “मुझे अपने अन्धकार में आपकी रोशनी खोजने दें …. आपकी महिमा मेरी घाटी में ।”
योना ने गहरे समूद्र में परमेश्वर की महिमा खोजी । वह परमेश्वर से विद्रोह कर अपने पापों से पराजित स्वयं को मछली के पेट में पाया । वहाँ, उसने परमेश्वर को पुकारा: “तू ने मुझे गहिरे सागर में …. डाल दिया; …. मैं जल से घिरा हुआ था …. मेरे प्राण निकले जाते थे” (योना 2:3,5)। अपनी स्थिति के बावजूद, उसने कहा, “मैं ने यहोवा को स्मरण किया; और मेरी प्रार्थना तेरे पास …. पहुँच गयी”(पद.7) । परमेश्वर ने उसकी प्रार्थना सुनकर उसे छुड़ाया ।
यद्यपि पाप परमेश्वर और हमारे बीच दूरियाँ बनाता है, हम परमेश्वर की पवित्रता, भलाई, और अनुग्रह अपने जीवनों के निम्नतम बिन्दु से भी देखते हैं । पाप से पश्चाताप् पर, वह हमें क्षमा करेगा । परमेश्वर घाटी से भी प्रार्थना का उत्तर देता है ।