उस युवा माँ ने अपने तीन वर्षीय बेटी हेतु दोपहर का भोजन तैयार करते समय अपने छोटे रसोई में फलों की खाली टोकरी देखते हुए आहें भरकर बोली, “यदि केवल एक टोकरी फल होता, मैं भरपूर महसूस करती!“ छोटी लड़की ने सुन लिया।
परमेश्वर ने हफ्तों उस परिवार को सम्भाला। फिर भी, वह संघर्षरत् माँ चिन्ता करती रही। तब एक दिन छोटी लड़की रसोई में फल की टोकरी दिखाकर चिल्लायी, “देखो माँ हम भरपूर हो गए हैं। एक थैला सेब के अलावा सब कुछ वैसा ही था।
इस्राएलियों का अगुवा, यहोशू मृत्यू के समय परमेश्वर के काम याद कर कहा, “तुम बहुत दिन तक जंगल में रहे“(यहोशू 24:7)। “{परमेश्वर ने} तुम्हें ऐसा देश दिया जिस में तुम ने परिश्रम न किया था, और ऐसे नगर …. जिन्हें तुम ने न बसाया था, …. और जिन बगीचों के फल …. खाते हो उन्हें तुम ने नहीं लगाया था“(पद.13)। यहोशू ने परमेश्वर के प्रावधानों की ताकीद में एक बड़ा पत्थर खड़ा किया।
इस्राएलियों की तरह, वह परिवार चुनौति एवं किल्लत बाद एक अन्य स्थान में रहकर एक बड़े क्षेत्र में लगे फलों का आनन्द लेता है, जिसे पूर्व मालिक ने लगाया था, और उनके रसोई में फलों से भरा कटोरा रहता है। यह परमेश्वर की भलाई याद दिलाती है और कैसे उस छोटी लड़की ने अपने परिवार में विश्वास, आनन्द, और सम्भावना डाला था।