बचपन में मेरी माँ ने मुझे आग से न खेलने को आगाह किया। फिर भी एक दिन मैंने जानने का निर्णय किया कि ऐसा करने से क्या होगा। मैं माचिस और कुछ का़गज लेकर, प्रयोग करने मकान के पिछवाड़ा में गया। तेज धड़कते हृदय के साथ, घुटने टेककर मैंने माचिस जलाकर का़गज में आग लगा दी।

अचानक मैंने अपनी माँ को आते देखा। पकड़े जाने के डर से अपने कृत्य को छिपाने के लिए मैं लपटों पर पैर रख दिया। किन्तु माँ चिल्लायी, “डेनी, अपने पैरों को हटाओ! नीचे आग है!“ सौभाग्यवश, मैंने शीघ्रता से अपने पैर हटा लिए और जलने से बच गया। उस समय मैंने पहचाना कि आग से नहीं खेलने का माँ का नियम मेरे आनन्द को बिगाड़ना नहीं था किन्तु उसकी चिन्ता मुझे सुरक्षित रखना था।

कभी-कभी हम परमेश्वर की आज्ञा के पीछे उसके कारणों को नहीं समझते हैं। हम यह भी सोच सकते हैं वह आनन्द में अमित विघ्न डालनेवाला है, हमें आनन्द लेने से रोकने हेतु नियम और कानून बनानेवाला। किन्तु परमेश्वर हमारी आज्ञाकारिता चाहता है क्योंकि उसके हृदय में हमारी सर्वोत्तम रूचि है। जब हम उसकी मानेंगे, हम उसके “प्रेम में बने“ रहेंगे और आनन्द से भरे होंगे(यूहन्ना 15:10-11)।

इसलिए जब परमेश्वर हमें पाप करने से रोकता है, वह हमारी भलाई के लिए करता है। वह हमें “आग से खेलने“ और जलने से बचाना चाहता है।