मैं लगभग आधे घण्टे से गाड़ी चला रहा था जब अचानक मेरी बेटी रोने-चिल्लाने लगी। मैंने पूछा, “क्या हुआ?“ उसने कहा उसके भाई ने उसकी बाँहें पकड़ ली थी। भाई ने कहा उसने उसको चुटकी भरी थी। उसने कहा कि उसने चुटकी भरी क्योंकि उसने कुछ बुरा बोला था।
दुर्भाग्यवश, बच्चों के मध्य सामान्य नमूना, वयस्क सम्बन्धों में भी दिखता है। एक व्यक्ति दूसरे को ठेस पहुँचाता है, और चोटिल व्यक्ति शब्दों से वापसी प्रहार करता है। पहला रुष्ठ व्यक्ति एक और अपमान के साथ प्रतिकार करता है। जल्द ही, क्रोध और क्रूर शब्द सम्बन्ध बिगाड़ देते हैं।
बाइबिल कहती है, “ऐसे लोग हैं जिनका बिना सोच-विचार का बोलना तलवार के समान चुभता है,“ और कि “कटुवचन से क्रोध भड़क उठता है“ किन्तु “कोमल उत्तर सुनने से गुस्सा ठण्डा हो जाता है“(नीति. 12:18; 15:1)। और कभी-कभी बिल्कुल शान्त रहना ही रुष्ठ, क्रूर शब्दों अथवा टिप्पणियों से निपटने का सर्वोत्तम तरीका है।
यीशु के क्रूसीकरण से पूर्व, धार्मिक अधिकारियों ने अपने शब्दों से उसे उकसाना चाहा(मत्ती 27:41-43)। फिर भी, “वह गाली सुनकर गाली नहीं देता था, …. पर अपने आप को सच्चे न्यायी के हाथ में सौंपता था“(1 पतरस 2:23)।
यीशु का उदाहरण और पवित्र आत्मा की सहायता हमें अपमानित करनेवालों को प्रतिउत्तर देने में सहायक है। प्रभु पर भरोसा करके, हमें अपने शब्दों को हथियार की तरह उपयोग करने की जरुरत नहीं।