सभी लोग संगीत भिन्न सुनते हैं। रचयिता अपनी कल्पना के कक्ष में सुनता है। दर्शक अपनी इन्द्रियों एवं भावनाओं से सुनते हैं। वादक समूह अपने निकट के वाद्य यंत्रों को सबसे स्पष्ट सुनते हैं।

एक अर्थ में, हम परमेश्वर के वादक समूह के अंग हैं। अक्सर हम अपने निकट की संगीत सुनते हैं। सन्तुलित रचना नहीं सुनने के कारण, हम अय्यूब की तरह दुःख में विलाप करते हैं: “लोग अब मुझ पर लगते गीत गाते, और मुझ पर ताना मारते हैं“(अय्यूब 30:9)।

अय्यूब ने याद किया किस तरह जवान एवं हाकिम उसको आदर देते थे। वह “अपने पगों को मलाई से धोता था और पास की चट्टानों से तेल की धाराएँ बहा करती थीं“(29:6)। किन्तु अब, वह उपहासकों का निशाना था। वह रोता है, “मेरी वीणा से विलाप“ {निकलती है}(30:31)। यद्यपि स्वरसंगति में अत्अधिक था। अय्यूब पूरा गीत सुनने में असमर्थ था।

सम्भवतः आज आप अपने वायोलिन के गम्भीर स्वर ही सुन पा रहे हैं। निराश न हों। आपका सम्पूर्ण जीवन परमेश्वर की रचना है। अथवा शायद आप एक आनन्दित बाँसुरी सुन रहे हैं। परमेश्वर की स्तुति करें और दूसरों के साथ अपना आनन्द बाँटें।

हम परमेश्वर के उद्धार की श्रेष्ट कृति का स्वर-संगीत बजा रहे हैं, और अन्ततः उसके भले उद्देश्य के लिए सब कुछ पूर्ण होगा। परमेश्वर हमारे जीवनों का रचयिता है। उसका गीत सिद्ध है, और वह भरोसेमन्द है।