एक वृद्ध उत्तरी अमरीकी एक युवा की कहानी बताता है जिसे अपना साहस प्रमाणित करने हेतु एक शरद् रात जंगल में भेजा गया। जल्द ही आसमान अन्धेरा हो गया। पेड़ की चरमराहट और चीख सुनायी दी, एक उल्लू चिल्लाया, और एक भेडि़या गुर्राया। भयभीत होने पर भी, साहस की जाँच के कारण वह युवा पूरी रात जंगल में रहा। अन्ततः सुबह हुआ, और उसने किसी को देखा। वह उसका दादा था, जो पूरी रात उसकी निगहबानी करता रहा।

मूसा मरुभूमि में गया, और एक जलती झाड़ी देखी जो भस्म नहीं होती थी। तब परमेश्वर ने उसे मिस्र लौटकर इस्राएलियों को क्रूर दासत्व से स्वतंत्र करने हेतु बुलाया। अनिच्छुक मूसा ने पूछा: “मैं जानेवाला कौन हूँ परमेश्वर ने सरलता से कहा, “मैं तुम्हारे साथ रहुँगा।”

“यदि मैं …. उनसे कहूँ, ’तुम्हारे पूर्वजों के परमेश्वर ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है,’ और वे मुझसे पूछें, ’उसका नाम क्या है?’ तब मैं उनसे क्या कहूँगा?”

परमेश्वर ने उत्तर दिया, “मैं जो हूँ सो हूँ ….उनसे कहना, {’मैं हूँ ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है’}” (निर्ग.3:11-14)। वाक्यांश “मैं जो हूँ सो हूँ” अर्थात्, “मैं जो होऊँगा सो होऊँगा” परमेश्वर का अनन्त और सम्पूर्ण चरित्र दर्शाता है।

परमेश्वर यीशु के विश्वासियों के साथ हमेशा उपस्थित रहने की प्रतिज्ञा की है। रात चाहे जितनी भी काली हो, अदृश्य परमेश्वर हमारी जरुरत अनुकूल प्रतिउत्तर देने को तैयार है।