41 वर्षीय ऑस्वोल्ड चेम्बर्स, एक शताब्दी पूर्व, प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश राष्ट्रमंडल की सेना के लिए YMCA पादरी के रूप में मिस्र पहुँचे। उन्हें काइरो के 6 मील उत्तर में जी़टोन शिविर में नियुक्ति मिली। पहली रात, अक्टूबर 27, 1915, चेम्बर्स ने अपनी डायरी में लिखा, “यह {क्षेत्र} सेना के हृदय में भी बिल्कुल विरान, मरुभूमि सा है और लोगों के लिए महिमामय अवसर। यह किसी के समान नहीं है जिसका मैं आदि हूँ, और मैं रूचि से नयी बातों को देख रहा हूँ जो परमेश्वर करेगा और योजना बनाएगा।”
चेम्बर्स नीतिवचन 3:5-6 की बातों पर विश्वास एवं उनका अभ्यास करता था: “तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन् सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा(नीति. 3:5-6)।”
यह सुख और चुनौति दोनों ही है। यह जानना सुरक्षा है कि परमेश्वर प्रतिदिन अगुवायी करेगा, किन्तु हम अपनी योजनाओं से इतना न चिपक जाएँ कि परमेश्वर के पुनःनिर्देशन अथवा उसके समय का विरोध करें।
चेम्बर्स ने कहा, “हमें कहाँ होना चाहिए, अथवा पहले से अनुमान लगाना कि परमेश्वर हमारे लिए उपयुक्त क्या रखा है,“ का निर्णय करना हमारे अधिकार में नहीं है। परमेश्वर सब नियोजित करता है। वह हमें जहाँ भी रखता है, हमारा महान उद्देश्य उस कार्य को सम्पूर्ण मन से करना है।