हमारे माध्यमिक स्कूल में हमें 4 वर्षों तक लतिनी भाषा सीखनी पड़ती थी l मैं आज उस अनुशासन की सराहना करता हूँ, किन्तु उस समय रटन थी l हमारी शिक्षिका अभ्यास और दोहराने में विश्वास करती थी l दिन में अनेक बार वह कहती, “दोहराना सिखने की माता है l” हम फुसफुसाते, “दोहराव निरर्थक है l”

अब मैं मानता हूँ कि अधिकतर जीवन केवल दोहराव है : हमारे द्वारा बार-बार किया जानेवाला नीरस, उदासीन, फीकी बातों का चक्र l डेनमार्क के दार्शिनिक सोरेन कर्क्गार्ड अनुसार, “दोहराव साधारण और भोजन की तरह अनिवार्य भी है l” किन्तु आगे उन्होंने कहा, यह वो रोटी है जिसका अंत धन्यवाद है l”

यह प्रतिदिन अपने कर्तव्य पूरी करना है, चाहे वो जितना भी नीरस, छोटा या साधारण हो, और उसपर परमेश्वर की आशीष मांगकर उसकी इच्छानुकूल बनाना है l उस तरह हम जीवन के अरुचिकर कार्यों को अनदेखा, अनंत परिणाम से परिपूर्ण पवित्र कार्य बनाएंगे l

कवि गेरार्ड मैनली हॉपकिंस अनुसार, “प्रार्थना में उठे हाथ परमेश्वर को महिमा देते हैं, किन्तु किसी पुरुष के हाथों में कांटेदार पंजा, और स्त्री के हाथों में जूठन की बाल्टी भी उसको महिमा देती है l परमेश्वर इतना महान है कि यदि आप चाहें तो सबकुछ उसे महिमा देगी l”

यदि हमारे कार्य मसीह के लिए किये जाते हैं, हम सबसे साधारण कार्य के आनंद और अर्थ से आश्चर्यचकित होंगे l