एक चर्च समूह ने एक उपदेशक बुलाया l अगुवे ने कहा, “परमेश्वर के बारे में बोलें, किन्तु यीशु के विषय नहीं l”
“क्यों?” उपदेशक ने आश्चर्य से पूछा l
“ऐसा है,” अगुवा बोला, हमारे कुछ विशेष सदस्यगण यीशु के विषय अप्रिय महसूस करते हैं l केवल परमेश्वर का नाम लें और हमारे लिए ठीक रहेगा l”
उपदेशक के लिये यद्यपि ऐसा निर्देश सवीकारना समस्या थी, जिसने बाद में कहा, “यीशु के बिना मेरे पास संदेश नहीं है l”
आरंभिक कलीसिया के समय ऐसा ही यीशु के शिष्यों से बोला गया l स्थानीय धार्मिक अगुवों ने एका करके शिष्यों से यीशु के विषय बोलने को मना किया(प्रेरितों 4:17) l किन्तु शिष्य बेहतर जानते थे l “यह तो हम से हो नहीं सकता कि जो हम ने देखा और सुना है, वह न कहें”(पद.20) l
परमेश्वर में विश्वास और उसके पुत्र यीशु मसीह में नहीं, विरोधाभास है l यूहन्ना 10:30 में, यीशु परमेश्वर और खुद में अपूर्व सम्बन्ध बताता है : “मैं और पिता एक हैं”-इस तरह उसने अपनी दिव्यता स्थापित की l इसलिए वह कह सका, “परमेश्वर पर विश्वास रखो और मझ पर भी …”(यूहन्ना 14:1) l पौलुस जानता था कि यीशु परमेश्वर और उसके तुल्य था(फ़िलि.2:6) l
हम यीशु नाम से न शर्मायें, क्योंकि “किसी दुसरे के द्वारा उद्धार नहीं; …. दूसरा नाम नहीं दिया गया,जिसके द्वारा हम उद्धार पा सकें”(प्रेरितों 4:12) l