मेरे बचपन में, सर्वाधिक भयभीत करनेवाली बीमारी पोलियो थी, क्योकि इससे अधिकतर छोटे बच्चे ही ग्रस्त होते थे l 1950 के दशक के मध्य में सुरक्षात्मक टीके के अविष्कार से पूर्व, केवल अमरीका में लगभग 20,000 लोग लकवाग्रस्त हो गए और करीब 1,000 लोगों की मृत्यु हो गयी l
प्राचीन काल में, लकवा एक स्थायी, आशाहीन स्थिति मानी जाती थी l किन्तु लोगों का एक समूह विश्वास करता था कि यीशु उनके मित्र की सहायता कर सकता था l यीशु द्वारा कफरनहूम में शिक्षा देते समय, चार लोग
मिलकर उसे उसके पास ले आये l भीड़ के कारण पहुँचाने में असमर्थ, “उन्होंने उस छत को जिसके नीचे वह था, खोल दिया; और …. उस खाट को जिस पर लकवे का रोगी पड़ा था, लटका दिया”(मर.2:1-4) l
जब यीशु ने उनके विश्वास को देखा, उसने उस लकवे के रोगी से कहा, ‘हे पुत्र, तेरे पाप क्षमा हुए’(पद.5), और फिर कहा “अपनी खाट उठाकर अपने घर चला जा”(पद.11) l यह कितना उल्लेखनीय था कि मित्रों के विश्वास के कराण, यीशु ने उसका पाप क्षमा किया और उसके असाध्य स्थिति को ठीक कर दिया !
जब हमारी नजर में कोई शारीरिक अथवा अध्यात्मिक संकट का सामना कर रहा हो, हमें प्रार्थना में एक होना है, अपने मित्र को यीशु के पास लाने हेतु – केवल एक जो उसकी स्थाई ज़रूरत की पूर्ति कर सकता है l