दृश्य तनाव दैनिक जीवन का हिस्सा है l कभी-कभी हमारे निर्णय हमारे दृढ़ निश्चय और परमेश्वर की प्रसन्नता की बजाए लोग क्या सोचेंगे या कहेंगे पर आधारित होते हैं l हमारी चिंता होती है लोग हमारा आंकलन करेंगे या मजाक बनाएँगे l

पौलुस प्रेरित ने दृश्य तनाव अनुभव किया l कुछ एक यहूदी मसीही खतना द्वारा वास्तविक उद्धार मानते थे (गला.1:7; देखें 6:12-15) l फिर भी, पौलुस दृढ़ता से प्रचार करता रहा कि उद्धार केवल अनुग्रह से है l इस कारण, उस पर स्वनियुक्त पासवान होने का आरोप लगा l और कि सुसमाचार के उसके सन्सकरण को प्रेरितों का अनुमोदन कभी नहीं मिला (2:1-10) l

इस तनाव के बावजूद, पौलुस मसीह की सेवा के विषय पूर्ण स्पष्ट था l परमेश्वर का अनुमोदन सर्वोपरि था l उसका लक्ष्य मनुष्यों की नहीं परमेश्वर की स्वीकृति थी (1:10) l

उसी तरह, हम मसीह के सेवक हैं l हम परमेश्वर की सेवा करते हैं चाहे लोग हमें आदर दें या तुच्छ जाने, दोष लगायें या प्रशंसा करें l एक दिन “हर एक को परमेश्वर को अपना अपना लेखा” देना होगा (रोमि.14:12) l इसका अर्थ यह नहीं कि हम लोगों की सोच एवं शब्द पर विचार न करें , किन्तु, परमेश्वर की प्रसन्नता हमारा प्रथम लक्ष्य है l हम अपने उद्धारकर्ता को कहते सुनना चाहते हैं, “धन्य, हे अच्छे और विश्वासयोग्य दास” (मत्ती 25:23) l