कभी-कभी लगता है जैसे परमेश्वर मेरी नहीं सुन रहा है l” ये ह्रदय-पुकार परमेश्वर की विश्वासिनी और एक पियक्कड़ पति का सामना करनेवाली स्त्री की थी, और अनेक विश्वासियों की हो सकती है l कई वर्षों तक अपने पति के परिवर्तन हेतु प्रार्थना करने के बाद भी कुछ नहीं हुआ l

बार-बार परमेश्वर से कुछ अच्छा मांगते हुए हम क्या सोचते हैं – कुछ जिससे सरलता से उसकी महिमा हो सकती है – किन्तु उत्तर शून्य? वह सुन रहा है कि नहीं?

उद्धारकर्ता के जीवन को देखें l गतसमनी के बाग़ में, वह घंटों प्रार्थना में व्यथित, अपना ह्रदय उंडेलते हुए विनती करता रहा, “यह प्याला मुझ से दूर हो जाए”(मत्ती 26:29)l किन्तु पिता का उत्तर स्पष्ट “नहीं” था l उद्धार देने हेतु, परमेश्वर को अपने पुत्र यीशु को क्रूस पर मरने भेजना था l यीशु ने अपनी सोच के बावजूद कि पिता ने उसे छोड़ दिया है, तीव्रता और भाव प्रवणता से प्रार्थना की क्योंकि उसे भरोसा था कि परमेश्वर सुन रहा है l

प्रार्थना करते समय, हम परमेश्वर के कार्य को देख या समझ नहीं सकते कि कैसे उससे भलाई निकलेगी l इसलिए उसपर भरोसा करके अपने अधिकार को त्यागकर परमेश्वर को सर्वोत्तम करने देते हैं l

हम अज्ञात को सर्वज्ञानी परमेश्वर को दे देते हैं l वह सुन रहा है और अपने तरीके से सर्वोत्तम कर रहा है l