मार्च 2014 में, मेरे गृह शहर क्षेत्र में जनजातीय संघर्ष के कारण, मेरे पिता के परिवार को दुसरे शरणार्थियों के साथ क्षेत्र की राजधानी में शरण लेना पड़ा l समस्त इतिहास में, लोग अपने देश में असुरक्षित महसूस कर सुरक्षा और कुछ बेहतर दुढ़ते हुए दुसरे स्थानों में शरण लिए हैं l
जब मैंने अपने गृह शहर में लोगों से बात की, मैंने यहोशू 20:1-9 में शरण स्थल के विषय सोचा l ये शहर अप्रत्याशित हत्या के कारण “बदला लेनेवाले सम्बन्धियों” से सुरक्षा पाने के स्थान थे (पद.3) l ये शांति और सुरक्षा देते थे l
आज भी लोग शरणस्थल ढूंढ़ते हैं, यद्यपि अनेक कारणों से l किन्तु इनकी आवश्यकता जितनी भी हो, आश्रय और भोजन के प्रावधान के साथ, इनसे शरणार्थियों और भगोड़ों की ज़रूरतें पूरी नहीं हो सकती हैं l इस तरह का आश्रय परमेश्वर में ही उपलव्ध है l परमेश्वर के साथ चलनेवाले उसमें सच्चा आश्रय और सबसे पूर्ण सुरक्षा पाते हैं l जब प्राचीन इस्राएल दासत्व में गया, प्रभु ने कहा, “जिन देशों में तुम आए हुए हो, उन में मैं स्वयं तुम्हारे लिए …. पवित्रस्थान(सुरक्षित आश्रय) ठहरूंगा” (यहेज. 11;16) l
भजनकार के साथ हम निश्चितता के साथ कह सकते हैं, “तू मेरे छिपने का स्थान है; तू संकट से मेरी रक्षा करेगा” (32:7) l