चर्च आराधना जारी थी, और उस सुबह कुछ पाहून भी मौजूद थे l उपदेशक अपना उपदेश आधा ही बोला था जब मैंने अपने एक पाहून को बाहर जाते देखा l जिज्ञासु और चिंतित होकर मैं बाहर उनसे मिलने गया l

“आप शीघ्र ही जा रही हैं,” मैंने उनसे कहा l “क्या आपके पास कोई समस्या है जिसमें मैं आपकी सहायता कर सकता हूँ?” वह खरी और स्पष्टवादी थी l “जी हाँ,” वह बोली, “मेरी समस्या वह उपदेश है! मैं उपदेशक की बात से सहमत नहीं हूँ.” उसके अनुसार हमारी किसी भी उपलब्धि का श्रेय और प्रशंसा परमेश्वर को जाता है l “कम से कम,” उस स्त्री ने शिकायत की, “मैं अपनी उपलब्धियों के लिए कुछ प्रशंसा चाहती हूँ!”

मैंने पासबान की बात उसको समझा दी l लोगों को उनके कार्य के लिए अवश्य ही मान्यता और प्रशंसा मिलनी चाहिए l फिर भी हमारे वरदान और गुण परमेश्वर की ओर से हैं, इसलिए वही महिमा के योग्य है l परमेश्वर पुत्र, यीशु ने भी कहा, “पुत्र आप से कुछ नहीं कर सकता, केवल वह जो पिता को करते देखता है” (यूहन्ना 5:19) l उसने अपने अनुयायियों से कहा, “मुझ से अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते” (15:5) l

हम स्वीकार करते हैं कि प्रभु ही वह हैं जो सब कुछ पूर्ण करने में हमारी मदद करता है l