बचपन में मुझे पेड़ पर चढ़ना पसंद था l कभी-कभी, बेहतर दृष्टि के लिए, मैं किसी डाली के झुकने तक उसके छोर तक पहुँच जाती थी l कोई आश्चर्य नहीं, कि अब मैं पेड़ पर नहीं चढ़ सकती l अब वह सुरक्षित या सम्मानजनक भी नहीं l
एक समृद्ध व्यक्ति, जक्कई यरीहो में अपना आत्म-सम्मान त्यागकर (और शायद अपनी सुरक्षा को नज़रंदाज़ करके) एक पेड़ पर चढ़ गया l यीशु गुज़र रहा था, और जक्कई उसकी एक झलक चाहता था l हालाँकि, “भीड़ के कारण देख न सकता था, क्योंकि वह नाटा था” (लूका 19:3) l सौभाग्यवश, वे बातें उसे यीशु को देखने और उससे बातें करने से रोक न सकीं l और यीशु से मिलने दे बाद, उसका जीवन सर्वदा के लिए बदल गया l “यीशु ने कहा, “आज इस घर में उद्धार आया है” (पद.9) l
हमें भी यीशु को देखने से रोका जा सकता है l गर्व हमें उसे अद्भुत युक्ति करनेवाला के रूप में देखने से, चिंता उसे शांति का राजकुमार के रूप में देखने से (यशा.9:6), पद और वस्तुएँ उसको संतुष्टता का उद्गम – जीवन की रोटी (युहन्ना 6:48) मानने से रोक सकते हैं l
यीशु की बेहतर दृष्टि पाने हेतु आप क्या कर रहे हैं? कोई भी ईमानदार प्रयास का परिणाम अच्छा हो सकता है l परमेश्वर अपने खोजनेवालों को प्रतिफल देता है (इब्र.11:6) l