किसी ख़ास अवसर के लिए घर साफ़ करते समय, मैं निराश होती हूँ क्योंकि मेरे विचार से जो मैं साफ़ नहीं करती हूँ मेहमान उसे ही देखेंगे l इससे मेरे मस्तिष्क में एक और बड़ा तार्किक और आध्यात्मिक प्रश्न कौंधता है l मनुष्य क्यों सही की अपेक्षा गलत पर तुरंत ध्यान देते हैं? हम दयालुता से अधिक अशिष्टता याद रखते हैं l उदारता से अधिक अपराधिक कार्यों पर ध्यान दिया जाता है l और हमारे चहूँ-ओर की खूबसूरती से अधिक हमारा ध्यान महाविपदा खींचता है l

तब मुझे ज्ञात होता है कि मैं परमेश्वर के साथ वैसा ही हूँ l उसके कार्यों पर ध्यान न देकर, मैं ऐसे कामों पर ध्यान देता हूँ जो उसने नहीं किये हैं, स्थितियाँ जिनके हल उसने नहीं दिए हैं l

अय्यूब की पुस्तक से, मुझे ताकीद मिलती है कि परमेश्वर ऐसा व्यवहार नहीं चाहता l वर्षों की समृद्धि के बावजूद, अय्यूब ने अनेक महाविपदाएं सही l अचानक वे ही उसके जीवन और संवाद के विषय बन गए l आखिरकार, परमेश्वर हस्तक्षेप करके उससे कुछएक कठिन प्रश्न पूछकर उसे अपना प्रभुत्व और सब कुछ जो वह नहीं जानता था न देखे थे याद दिलाए (अय्यूब 38-40) l

नकारात्मक पर ध्यान केन्द्रित करते समय, मुझे अय्यूब के जीवन को याद करके और रुककर परमेश्वर द्वारा किये हुए और किये जा रहे सारे आश्चर्यों पर ध्यान देना चाहिए l