“माँ, आज आप कैसी हैं?” मैंने यूं ही पूछा l मेरी 84 वर्षीय वृद्ध मित्र, अपने जोड़ों में पीड़ा और दर्द की ओर संकेत करके फुसफुसाई, “वृद्धावस्था कठिन है!” तत्पश्चात् उन्होंने अनुराग से कहा, “किन्तु परमेश्वर मेरे लिए भला रहा है l”

बिली ग्रेहेम अपनी पुस्तक निअरिंग होम में कहते हैं, “मेरे जीवन का महानतम् आश्चर्य वृद्ध होना रहा है l” “अब मैं वृद्ध व्यक्ति हूँ, यह सरल नहीं है l” फिर भी, ग्रेहेम कहते हैं, “बाइबल हमारे द्वारा अनुभव की जानेवाली समस्यायों को न छिपाती है, न ही वृद्धावस्था की उपेक्षा करती है या किरकिराहट के साथ उसे बोझ बताती है l” उसके पश्चात् वह वृद्ध होते समय के दौरान आनेवाले कुछ एक प्रश्न करते हैं, जैसे कि, “किस तरह हम न केवल भय और संघर्ष और बढ़ती सीमाओं का सामना करना सीखें बल्कि इन कठिनाईयों में भीतरी तौर पर मज़बूत बनें?”

हमें यशायाह 46 में परमेश्वर का आश्वासन मिलता है l तुम्हारे बुढ़ापे में … और तुम्हारे बाल पकने के समय तक तुम्हें उठाए रहूँगा l मैं ने तुम्हें बनाया और तुम्हें … छुड़ाता भी रहूँगा” (पद.4) l

हमें नहीं मालूम हम कितने वर्ष इस पृथ्वी पर रहेंगे या वृद्धावस्था में किसका सामना करेंगे l किन्तु एक बात निश्चित है : परमेश्वर हमारे सम्पूर्ण जीवन में हमारी देखभाल करेगा l