गिरगिट के विषय सोचते हुए, हम संभवतः परिवेश के अनुसार उसके रंग बदलने की योग्यता के विषय सोचते हैं l किन्तु गिरगिट के पास एक और रुचिकर बात है l कितनी बार, मैंने गिरगिट को सड़क पर साथ चलते देख कर सोचा यह गंतव्य तक कैसे पहुँचता है l अनिक्षा से, वह अपनी एक टांग लम्बी करके, अपना विचार बदलकर, एक और प्रयास करते हुए सावधानी से एक पाँव बढ़ाता है, मानो इस बात से डरा हुआ है कि उसके नीचे की धरती सरक जाएगी l इसलिए मैं अपने को हँसते हुए रोक नहीं सका जब मैंने किसी को कहते सुना, “गिरगिट की तरह चर्च जानेवाला न बनें जो कहते है, ‘आज मैं चर्च जाऊँगा; अगले सप्ताह जाऊँगा; नहीं, थोड़ा सोचने दें!’”

यरूशलेम में “यहोवा का भवन” दाऊद का उपासना गृह था, और वह “गिरगिट” उपासक नहीं था l इसके बदले, वह यह कहनेवालों के साथ आनंदित होता था, “हम यहोवा के भवन को चलें” (भजन 122:1) l आरंभिक कलीसिया के विश्वासियों के लिए भी यह सच था l “वे प्रेरितों से शिक्षा पाने, और संगति रखने, और रोटी तोड़ने, और प्रार्थना करने में लवलीन रहे” (प्रेरितों 2:42, 46) l

उपासना और संगति करने में कितना आनंद है! विश्वासियों के रूप में अपने आत्मिक उन्नत्ति के लिए मिलकर प्रार्थना और उपासना करना, वचन का अध्ययन करना, और परस्पर चिंता करना कितना महत्वपूर्ण है!