मैं लन्दन में नेशनल गैलरी और मोस्को का स्टेट ट्रेत्याकोव गैलरी जैसे संघ्रालय देखना पसंद करता हूँ l जबकि अधिकतर कला असाधारण है, मैं कुछ एक से भ्रमित हूँ l मैं शायद चित्रफलक पर रंग के निरुदेश्य छींटे देखकर सोचता हूँ मैं नहीं जानता मैं क्या देख रहा हूँ-यद्यपि कलाकार अपनी कला में माहिर है l
उसी प्रकार हम वचन के विषय भी सोचते हैं l हम सोचते हैं, क्या उनको समझना संभव है? मैं कहाँ से आरंभ करूँ? शायद पौलुस के शब्द हमारी कुछ मदद कर सकते हैं : “जितनी बातें पहले से लिखीं गयीं, वे हमारी ही शिक्षा के लिए लिखीं गईं हैं कि हम धीरज और पवित्रशास्त्र के प्रोत्साहन द्वारा आशा रखें” (रोमियों 15:4) l
परमेश्वर ने बाइबल हमारी शिक्षा और प्रोत्साहन के लिए दी है l उसने हमें अपनी आत्मा उसके मन को समझने के लिए दिया है l यीशु ने कहा कि वह अपनी आत्मा “सब सत्य का मार्ग” (यूहन्ना 16:13) बताने के लिए भेजेगा l पौलुस 1 कुरिन्थियों 2:12 में यह कहकर इसकी पुष्टि की, “हम ने … वह आत्मा पाया है जो परमेश्वर की ओर से है कि हम उन बातों को जाने जो परमेश्वर ने हमें दी हैं l”
आत्मा की सहायता से, हम भरोसे के साथ बाइबल पढ़ सकते हैं, जानते हुए कि उसके पृष्ठों द्वारा परमेश्वर की इच्छा है हम उसको और उसके मार्गों को जाने l