उप-सहारा अफ्रीका में अपने कठिन बचपन को याद करते हुए सैमुएल ने कहा, “सोने से पूर्व मेरी माँ हमें मिर्च देती थी l हम अपने मूँह को ठण्डा करने हेतु पानी पीकर पेट भर लेते थे l” यह प्रभावशाली नहीं था l”
सरकारी उथलपुथल के कारण सैमुएल के पिता को जान बचाने के लिए भागना पड़ा, जिससे केवल मेरी माँ हमारा खर्च उठाती थी l तब उसके भाई को लाल खून की कोशिका रक्तहीनता हो गई, और इलाज के लिए पैसे नहीं थे l उसकी माँ उनको चर्च ले गई, जो सैम के लिए अर्थहीन था l परमेश्वर हमें कैसे दुःख उठाने दे सकता था? उसने सोचा l
तब एक दिन एक व्यक्ति उनको ज़रूरी दवाई लाकर दिया l उसकी माँ ने कहा, “हम रविवार को इस व्यक्ति के चर्च जाएंगे l” सैम को इस चर्च के विषय अलग महसूस हुआ l वह यीशु के प्रेम में जीवन जीकर आनंदित हुआ l
यह 3 दशक की बात है l वर्तमान में संसार के इस हिस्से में सैम ने 20 से अधिक कलीसियाएं, एक बड़ा स्कूल, और एक अनाथालय आरंभ किया l यीशु के भाई, याकूब के “वचन पर चलनेवाले” बनने (याकूब 1:22), की शिक्षानुसार उसने शुद्ध और निर्मल भक्ति की विरासत जारी रखा है l हमारे परमेश्वर और पिता के निकट शुद्ध और निर्मल भक्ति यह है कि अनाथों और विधवाओं के क्लेश में उसकी सुधि लें (पद.27) l