मेरे लिए वषों तक पहाड़ी उपदेश (मत्ती 5-7) मानव व्यवहार की रूप-रेखा, हर एक की पहुँच से बाहर एक मानक था l मैं सही अर्थ कैसे भूल गया? यीशु ने ये शब्द हमें निराश करने के लिए नहीं कही, किन्तु बताने के लिए परमेश्वर कैसा है l

हम अपने शत्रु से प्रेम क्यों करें? क्योंकि हमारा करुणामय पिता बुरे और भले दोनों पर सूरज उदय करता है l क्यों स्वर्ग में धन इकठ्ठा करें? क्योंकि पिता वहाँ रहता है और हमें बहुतायत से पुरस्कार देगा l भय और चिंता बगैर क्यों जीवन जीएँ? क्योंकि जंगली सोसनों को वस्त्र पहनाने वाला हमारी चिंता करेगा l क्यों प्रार्थना करें? यदि हमारा सांसारिक पिता अपने बच्चे को रोटी या मछली देता है, स्वर्गिक पिता अपने मांगनेवालों को कितनी अच्छी वस्तुएं देगा?

यीशु ने पहाड़ी उपदेश (मत्ती 5-7) केवल परमेश्वर के आदर्शों को समझाने के लिए नहीं दिया जिसकी प्राप्ति की इच्छा हममें होना चाहिए किन्तु यह दिखाने के लिए भी कि इस जीवन में हम उस आदर्श तक नहीं पहुँच सकते हैं l

परमेश्वर के समक्ष हम एक से हैं : हत्यारे और बदमिजाजी, व्यभिचारी और लालसा करनेवाले, चोर ओर लालची l हम सब परेशान हैं, और परमेश्वर को जानने की इच्छा रखनेवालों के लिए यह मानवीय दशा उचित है l परम आदर्श से पतित, हमें केवल अनुग्रह के परम सुरक्षा जाल में ही जाना होगा l