एक समारोह में मंच पर माइक्रोफोन में रेबेका का पहला वाक्य कमरे में गूँज गया l उसके लिए अपने शब्दों को सुनना निराशा थी, और उसे दोषयुक्त ध्वनि प्रणाली के अनुकुल अपने को संयोजित करके अपने द्वारा बोले गए शब्द और प्रत्येक प्रतिध्वनि को नज़रंदाज़ करना पड़ रहा था l

कल्पना करें खुद द्वारा बोले गए सभी बातों को दोहराए जाते हुए सुनना! हमारे द्वारा दोहराना “मैं तुमसे प्रेम करती हूँ” या “मैं दोषी हूँ” या “प्रभु, आपका धन्यवाद” या “मैं तुम्हारे लिए प्रार्थना करती हूँ ;” किन्तु हमारे सभी शब्द खुबसूरत, कोमल या दयालु नहीं होते l उन क्रोधित आवेग या अपमानित करनेवाली टिप्पणियाँ, एक भी जिन्हें कोई सुनना नहीं चाहता, दूसरी बार कभी नहीं-शब्द जिन्हें हमें वापस लेना चाहिए?

भजनकार दाऊद की तरह, हम भी अपने मुँह पर पहरा चाहते हैं l उसकी प्रार्थना थी, “हे यहोवा, मेरे मुख पर पहरा बैठा, मेरे होठों के द्वार की रखवाली कर! (भजन 141:3) l और सचमुच, प्रभु वह करना चाहता है l वह हमारे शब्दों पर नियंत्रण चाहता है l वह हमारे होठों की रक्षा कर सकता है l

जब हम ध्यानपूर्वक सुनकर अपने ध्वनि प्रणाली को समायोजित करके अपने कहे गए शब्दों के विषय प्रार्थना करते हैं, प्रभु धीरज से सुनकर नियंत्रण हेतु समर्थ बनाएगा l और सबसे सर्वोत्तम, हमारे पराजित होने पर हमें क्षमा करके सहायता पाने की हमारी इच्छा से खुश होगाl