जब पासवान ने एक प्राचीन से कलीसियाई प्रार्थना करने को कहा, उसने यह कहकर सबको चकित कर दिया, “पासबान जी, मुझे क्षमा करें, मैं चर्च आते समय अपनी पत्नी से वाद-विवाद करता आया हूँ, और इसलिए मैं प्रार्थना नहीं कर सकता l” अगला क्षण तकलीफदेह था l पास्टर ने प्रार्थना की l उपासना चलता रहा l बाद में, पासवान ने प्रण किया कि वह व्यक्तिगत् रूप से पूछ कर ही किसी को प्रार्थना करने देगा l
उस व्यक्ति ने ऐसे स्थान में चौकानेवाली ईमानदारी दिखाई जहाँ दिखावा सरल होता l किन्तु यहाँ पर प्रार्थना के विषय एक बड़ा सबक है l परमेश्वर प्रेमी पिता है l यदि मैं अपनी पत्नी का आदर और सम्मान नहीं करता हूँ जो परमेश्वर की दुलारी बेटी है, तो स्वर्गिक पिता मेरी प्रार्थना क्यों सुनेगा?
प्रेरित पतरस इसके विषय रुचिकर बात कही : उसने पतियों को अपनी पत्नी का आदर करने को कहा यह समझ कर कि दोनों जीवन के वरदान के वारिस हैं “जिससे तुम्हारी प्रार्थनाएँ रुक न जाएँ” (1 पतरस 3:7) l मूल सिद्धांत यह है, हमारे सम्बन्ध हमारे प्रार्थना जीवन को प्रभावित करते हैं l
कितना अच्छा होता यदि हम अपने भाई बहनों के साथ रविवारीय मुस्करहट और धार्मिक दिखावे की जगह तरोताज़गी देनेवाली ईमानदारी से बदल देते? परमेश्वर हमारे द्वारा कितना करेगा जब हम अपने समान परस्पर प्रार्थना करेंगे और प्रेम करेंगे ?