एक दिन हम अपनी बेटी को स्कूल से जो 100 किलोमीटर(60 मील) दूर है से लेकर एक निकट के समुद्र तट के निकट रिसोर्ट में नाश्ता करने गए l नाश्ता का आनंद लेते समय हमने तट पर अनेक नाव देखे l सामान्यतः वे लंगर से बंधी रहती हैं, किन्तु मैंने एक को स्वतंत्रता से इधर-उधर बहते देखा-धीरे से समुद्र की ओर l
घर जाते समय, मैंने इब्रानियों की पत्री में विश्वासियों को दी गई सामयिक चेतावनी पर विचार किया l “हम उन बातों पर जो हम ने सुनी हैं, और भी मन लगाएँ, ऐसा न हो कि बहककर उन से दूर चले जाएं” (इब्रा. 2:1) l निकट रहने के अच्छे कारण हैं l इब्रानियों का लेखक कहता है जबकि मूसा की व्यवस्था भरोसेमंद और मानना ज़रूरी था, परमेश्वर पुत्र का सन्देश बहुत ही श्रेष्ठतर है l यीशु में हमारा उद्धार “इतना बड़ा है” कि उसकी अवहेलना नहीं की जा सकती (पद.3) l
परमेश्वर से बहककर दूर जाना पहले दिखाई नहीं देता, वह धीरे-धीरे होता है l हालाँकि, उसके साथ प्रार्थना में संवाद करने और उसका वचन पढ़ने, अपनी गलतियों को उसके समक्ष मानने, और यीशु के अनुयायियों के साथ परस्पर संवाद करने से हम उसमें स्थिर रह सकते हैं l जब हम निरंतर प्रभु के साथ संपर्क में रहते है, वह हमें थामने में विश्वासयोग्य रहेगा, और हम बहककर दूर नहीं जाएँगे l