घबराहट में, एक स्त्री गृह सहायक केंद्र में फ़ोन की जहाँ मैं कार्यरत था l एक तापक समस्या ने उसके किराए के मकान को फ्रीज़र में बदल दिया था l भय में, उसने मुझसे अपने बच्चों की सुरक्षा मांगी जिसका मैंने लिखित अधिकारिक प्रतिउत्तर दिया : “एक होटल में चले जाएं और मालिक को बिल भेज दें l” उसने क्रोध से फोन रख दिया l
मैं उसके प्रश्न का किताबी उत्तर जानता था, किन्तु हृदय की बात नहीं l वह चाहती थी कोई उसका भय और घबराहट समझ ले l वह आश्वासन चाहती थी वह अकेले नहीं है l मैंने उसे ठन्डे में ही छोड़ दिया l
अय्यूब का सब कुछ समाप्त होने के बाद, उसके मित्रों में समझ थोड़ी थी l सोपर की सलाह थी वह केवल परमेश्वर के लिए जीवन व्यतीत करे l तब “तेरा जीवन दोपहर से भी अधिक प्रकाशमान होता.” उसने कहा (11:17) l अय्यूब ने इस सलाह पर तीखा कटाक्ष किया : “जब तुम मरोगे तब बुद्धि भी जाती रहेगी!” (12:2) l वह वास्तविक-संसार की समस्याओं के किताबी उत्तर के असंतुष्ट स्वाद से परिचित था l
अय्यूब की पूरी समस्या को नहीं समझनेवाले उसके मित्रों की आलोचना करना सरल है l किन्तु कितनी बार क्या हम भी ऐसा ही करते हैं? लोग चाहते हैं कि हम सुने और समझें l वे जानना चाहते हैं कि हमें चिंता है l