मेरे बचपन में, हमारा परिवार हर महीने ओहायो से पशिचम वर्जिनिया मेरे नाना-नानी के पास मिलने जाता था l हर बार उनके फार्महाउस के दरवाजे पर पहुँचने पर, लेस्टर नानी, “आओ और विश्राम करो,” शब्दों से हमारा स्वागत् करती थीं l यह उनका हमें आराम देने और कुछ समय रहकर हाल के बातों से अवगत् होने का तरीका था l

जीवन व्यस्त हो सकता है l हमारे क्रिया-प्रवृत्त संसार में लोगों के साथ सामाजिक बनना कठिन है l लोगों को अपने साथ फुर्सत में बैठने हेतु बुलाने के लिए समय निकालना कठिन है l सन्देश टेक्स्ट करके सही बिंदु पर पहुँचने का लाभ अधिक होता है l

किन्तु देखें कि यीशु ने एक कर अधिकारी के जीवन में अंतर लाने हेतु क्या किया l वह जक्कई के घर उससे “परिचित होने” गया l उसके शब्द, “मुझे तेरे घर में रहना अवश्य है,” देर तक ठहरने का संकेत करते हैं (लूका.19:5) l यीशु का उसके साथ समय बिताने से उसका जीवन पुर्णतः बदल गया l

मेरी नानी के घर के आगे बरामदा पर आगंतुकों के स्नेही स्वागत, विश्राम और बातचीत के लिए अनेक कुर्सियां रखीं थीं l यदि हम किसी को जानने और उनके जीवन में अंतर लाना चाहते हैं – जैसे यीशु ने जक्कई के साथ किया – हमें उनको आमंत्रित करके उनको आराम देना होगा l