डेविड नेसर अपनी पुस्तक जम्पिंग थ्रू फायर, में एक आत्मिक यात्रा की कहानी बताता है l यीशु से रिश्ता बनाने से पूर्व, कुछ मसीही किशोर उसके मित्र बन गए l यद्यपि अधिकतर समय उसके मित्र उदार, मनोहर थे , और आलोचनात्मक नहीं थे, डेविड ने एक को अपने महिला-मित्र को झूठ बोलते सुना l इस पर विचार करके, डेविड ने कहा कि इस घटना ने उसे और भी मसीही मित्रों के निकट ले आया l उसने पहचाना कि उसकी तरह उनको भी अनुग्रह चाहिए था l
हमें अपने परिचितों के समक्ष सिद्ध बनने का ढोंग नहीं करना चाहिए l अपनी गलतियों और संघर्षों के विषय ईमानदार होना नेक है l प्रेरित पौलुस ने खुलकर स्वयं को सबसे अधम पापी कहा (1 तीमु. 1:15) l उसने रोमियों 7 में पाप के साथ अपनी कुश्ती का वर्णन करके कहता है, “इच्छा तो मुझ में है, परन्तु भले काम मुझ से बन नहीं पड़ते” (पद.18) l दुर्भाग्यवश, विपरीत भी सही था : “जिस बुराई की इच्छा नहीं करता, वही किया करता हूँ” (पद.19) l
अपने संघर्षों के विषय स्पष्ट, हमें दूसरे मनुष्यों के बराबर करता है-जो हमें हमारे उचित स्थान पर कर देता है! हालाँकि, यीशु मसीह के कारण, हमारे पाप अनंत तक हमारा पीछा नहीं करेंगे l यह उस प्राचीन उक्ति की तरह है, “मसीही सिद्ध नहीं हैं, केवल माफ़ किये हुए हैं l”