शिक्षक ने कैथलीन को सामने बुलाकर एक वाक्य का विश्लेषण करने को कहा पर वह घबरायी l नूतन स्थानांतरित विद्यार्थी होकर आयी, वह व्याकरण का यह भाव नहीं जानती थी l कक्षा ने उसका मजाक बनाया l

फ़ौरन शिक्षक ने उसका बचाव किया l “यह सप्ताह के किसी दिन तुम्हें पीछे छोड़ सकती है!” उसने समझाया l वर्षों बाद, कैथलीन ने उस क्षण को याद किया :मैंने उस दिन आरंभ करके शिक्षक के कहे अनुसार मेहनत किया l” अंततः, कैथलीन पारकर अपने लेखन के लिए पुलिज़र पुरस्कार जीती l

कैथलीन के शिक्षक की तरह, यीशु असहायों और असुरक्षितों का समर्थन किया l शिष्यों द्वारा बच्चों को उससे दूर करने पर वह क्रोधित हुआ l “बालकों को मेरे पास आने दो और उन्हें मना न करो,” उसने कहा (मरकुस 10:14) l वह एक तिरस्कृत गैर-यहूदी समूह तक पहुंचकर, नेक सामरी को अपने दृष्टान्त का नायक बनाया (लूका 10:25-37) और याकूब के कुँए पर एक खोजी सामरी स्त्री को वास्तविक आशा दी (यूहन्ना 4:1-26) l व्यभिचार में फंसी एक स्त्री को क्षमा करके सुरक्षा दी (यूहन्ना 8:1-11) l और जबकि हम बिल्कुल असहाय थे, मसीह हमारे लिए अपना जीवन दिया (रोमियों 5:6) l

असुरक्षित और हाशिये पर के लोगों का बचाव करके, हम उनको उनकी संभावनाएँ समझाने में सहायक होते हैं l हम उनको सच्चा प्रेम दिखाकर, एक छोटे किन्तु महत्वपूर्ण तरीके से यीशु का मन प्रतिबिंबित करते हैं l