मेबरी, वर्जिनिया में, 1995 में, मेरी पत्नी, कैरोलीन और मैं, लकड़ी पर नक्काशी करनेवाले उस्ताद, फिप्स फेस्टस बोर्न से उनकी दूकान में मिले, जिनकी मृत्यु 2002 में हुई l उनकी नक्काशी वास्तविक वस्तुओं की लगभग हुबहू प्रतीक होती थीं l उनका कहना था, “एक बत्तख की नक्काशी सरल है l एक लकड़ी का टुकड़ा लीजिये, अपने मस्तिष्क में एक बत्तख रखिये, और उन भागों को हटा दीजिए जो उसकी तरह नहीं लगतीं l”
परमेश्वर के साथ भी ऐसा ही है l वह हमें देखता है-खुरदरी लकड़ी का एक टुकड़ा-छाल, गाँठ, और डालियों के पीछे मसीह के समान स्त्री अथवा पुरुष की कल्पना करके व्यर्थ को हटा देता है l हम चकित होते यदि हम देख पाते हम “परिपूर्ण” बत्तख की तरह कितने खूबसूरत हैं l
परन्तु सर्वप्रथम हमें अपने को एक लकड़ी का टुकड़ा मानकर उस कलाकार को उसकी इच्छानुसार काटने, आकार देने, और साफ़ करने देना है l अर्थात् आकार देनेवाले परमेश्वर के उपकरण-सुखद अथवा दुखद-की तरह अपनी स्थितियों को देखना होगा l वह हमें आकार देता है, उस खूबसूरत प्राणी के रूप में जिसकी उसने कुरूप लकड़ी के टुकड़े में देखा था l
कभी यह प्रक्रिया अद्भुत है; कभी दुखदायी l किन्तु अंत में, परमेश्वर के सब उपकरण हमें “उसके पुत्र के स्वरुप में” बदल देते हैं (रोमियों 8:29) l
क्या आप वह स्वरुप चाहते हैं? खुद को सिद्ध कारीगर के हाथों में सौंपें l