मुझे 18 वर्ष की उम्र में प्रथम पूर्णकालिक नौकरी मिली, और मैंने पैसे संचित करना सीख लिया l मैंने मेहनत करके एक वर्ष स्कूल जाने लायक पैसे जमा किये l तब मेरी माँ के आकस्मिक शल्यचिकित्सा के लिए मेरे पास बैंक में पैसे थे l
मेरी माँ के लिए प्रेम मेरे भविष्य की योजना के ऊपर लगा l इलिसाबेथ एलियट की पुस्तक पैशन एंड प्यूरिटी के ये शब्द नए अर्थ में दिखाई दिए : “यदि हम प्राप्त किसी भी वस्तु को कस कर पकड़ लेते हैं, और छोड़ना नहीं चाहते अथवा देनेवाले की इच्छानुकुल उपयोग नहीं होने देते, हम आत्मा का विकास रोकते हैं l यहाँ एक गलती करना सरल है, ‘यदि परमेश्वर ने मुझे दिया है’, हम कहते हैं, ‘यह मेरा है l मैं जो चाहूँ इससे कर सकता हूँ l’ नहीं l सच है कि उसको धन्यवाद देने हेतु मेरा है और वापस देने हेतु मेरा है … देने के लिए मेरा है l”
मैं पहचान गई कि नौकरी और पैसे जमा करने का अनुशासन परमेश्वर के उपहार थे! मैं अपने परिवार को उदारता से दे सकी क्योंकि मैं आश्वस्त थी परमेश्वर एक वर्ष का स्कूल खर्च देगा, और उसने दिया l
आज, परमेश्वर हमसे 1 इतिहास 29:14 में दाऊद की प्रार्थना का उपयोग किस तरह चाहता है, “तुझी से तो सब कुछ मिलता है, और हम ने तेरे हाथ से पाकर तुझे दिया है l”