यीशु का प्रिय शिष्य, यूहन्ना वृद्ध होते हुए, तीनों पत्रियों में अधिकाधिक सीमित होकर, परमेश्वर के प्रेम पर पूर्णरूपेण केन्द्रित हो हुआ l पीटर क्रीफ्त अपनी पुस्तक नोइंग द ट्रुथ ऑफ़ गोड्ज़ लव  में, एक पुरानी दंतकथा में एक बार यूहन्ना के एक शिष्य की उससे शिकायत की, “आप और कोई बात क्यों नहीं करते हैं?” उत्तर था, “क्योंकि और कुछ है ही नहीं l”

परमेश्वर का प्रेम वास्तव में यीशु के मिशन और उपदेश का केंद्र है l अपने सुसमाचार में, यूहन्ना ने लिखा, “क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो जो कोई उस पर विश्वास करे वह नष्ट न हो, परन्तु अनंत जीवन पाए” (यूहन्ना 3:16) l

प्रेरित पौलुस हमसे कहता है कि हमारे जीवन आचरण का केंद्र परमेश्वर का प्रेम है, याद दिलाता है कि “न मृत्यु, न जीवन, न स्वर्गदूत, न प्रधानताएं, न वर्तमान, न भविष्य, न सामर्थ्य, न ऊंचाई, न गहराई, और न कोई और सृष्टि हमें परमेश्वर के प्रेम से जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में हैं, अलग कर सकेगी” (रोमियों 8:38-39) l

परमेश्वर का प्रेम अतिसामार्थी, उपलब्ध, और दृढ़ता देनेवाला है कि हम निश्चितता से प्रत्येक दिन में यह जानकार प्रवेश कर सकते हैं कि भली वस्तुएं उसके हाथ से हैं और उसकी सामर्थ्य से चुनौतियों का सामना किया जा सकता है l समस्त जीवन में, उसका प्रेम ही सबसे महत्वपूर्ण है l