आरंभिक काल में संपादक होकर मैं हमारी प्रतिदिन की रोटी  मासिक भक्तिपरक पुस्तिका के जिल्द पृष्ठ का पद चुनता था l मैंने सोचा इससे क्या अंतर है l

शीघ्र उसके बाद, एक पाठक ने लिखा कि उसने शून्य परिणाम के साथ अपने बेटे के लिए 20 वर्ष से अधिक प्रार्थना की l तब एक दिन वह मेज पर रखी भक्तिपरक पुस्तिका के जिल्द पर लिखा पद पढ़ा l आत्मा के उन शब्दों द्वारा कायल होकर, उसने अपना जीवन यीशु को दे दिया l

मुझे वह पद या महिला का नाम याद नहीं l किन्तु उस दिन मैं परमेश्वर के सन्देश की स्पष्टता नहीं भूल सकता l उसने एक पद द्वारा प्रार्थना का उत्तर दिया l मुझसे परे एक स्थान से, वह अपनी उपस्थिति के अचरज को मेरे कार्य और अपने शब्दों में लेकर आया l

यूहन्ना ने यीशु को “जीवन का वचन” कहा (1 यूहन्ना 1:1) l उसकी चाहत थी सब उसका अर्थ जाने l “हम … तुम्हें उस अनंत जीवन का समाचार देते हैं जो पिता के साथ था और हम पर प्रगट हुआ”(पद.2) l “जो हम ने देखा और सुना है उसका समाचार तुम्हें भी देते हैं, इसलिए कि तुम भी हमारे साथ सहभागी हो” (पद. 3) l

किसी पृष्ठ पर शब्द लिखना कोई जादू नहीं l किन्तु बाइबिल के शब्दों में जीवन-परिवर्तन की सामर्थ्य है क्योंकि वे हमें जीवन के वचन-यीशु की ओर इशारा करते हैं l