ऑफिसर जोशुआ चेम्बर्लिन, अमरीकी गृहयुद्ध के अंतिम दिन, यूनियन सेना के अधिकारी थे l उसके सैनिक सहयोगी सेना के आत्म-समर्पण हेतु पंक्तिबद्ध थे l एक गलत शब्द अथवा युद्धकारी क्रिया और शांति की चाहत संहार में बदल सकती थी l इस मर्मस्पर्शी कार्य में, चेम्बर्लिन ने अपने सैनिकों से शत्रु को सलामी देने को कहा ! कोई मज़ाक या निन्दनीय शब्द नहीं-केवल सलामी में बंदूकें और आदर में उठे हुए तलवार l

लूका 6 में यीशु के क्षमा के शब्द, हमें अनुग्रह सहित और अनुग्रह रहित लोगों में अंतर समझाते हैं l उसकी क्षमा जानने वालों को सभी दूसरे लोगों से बिल्कुल भिन्न होना है l जो कार्य औरों को असंभव प्रतीत हो वही करें l अपने शत्रु को क्षमा और प्रेम करें l यीशु ने कहा, “जैसा तुम्हारा पिता दयावंत है, वैसे ही तुम भी दयावंत बनो” (पद. 36) l

इस सिद्धांत को अपनाने पर हमारे कार्यस्थल और परिवार पर इसके प्रभाव की कल्पना करें l यदि एक सलामी सेना को चंगा कर सकता है, हममें होकर मसीह द्वारा प्रतिबिंबित अनुग्रह की सामर्थ्य के विषय सोचें! वचन हमें यह बात, एसाव के अपने धोखेबाज़ भाई को स्वीकारने में (उत्प. 33:4), जक्कई के आनंदित मन फिराओ में (लूका 19:1-10), और पिता का उड़ाऊ पुत्र को स्वीकारने में बताती है (लूका 15) l

मसीह के अनुग्रह से, हमारे शत्रुओं और हमारे बीच की कड़वाहट और मतभेद का यह अंतिम दिन हो l