एक युवा जापानी समस्याग्रस्त था-वह अपने घर के बाहर जाने से डरता था l लोगों से दूर रहने के लिए, वह दिन में सोता था और पूरी रात टी.वी. देखते हुए जागता था l वह किकिकोमोरी या आधुनिक सन्यासी था l समस्या स्कूल में कम अंक लाने के कारण स्कूल छोड़ने से शुरु हुई l समाज से अधिक दूरी बनाकर, खुद को समाजिक रूप से अनुपयुक्त समझने लगा l आख़िरकार उसने अपने मित्रों और परिवार से बोलचाल बंद कर दिया l वह टोक्यो में इबासु- एक सुरक्षित स्थान जहाँ टूटे लोग पुनः समाज में लौट सकते हैं-नामक एक युवा क्लब में जाकर पुनः आरोग्य हो सका l
कैसा होता यदि हम कलीसिया को इबासु –और उससे अधिक समझते? शंका नहीं, हम टूटे लोगों का एक समाज हैं l पौलुस ने कुरिन्थुस की कलीसिया के पूर्व जीवन को समाज-विरोधी, हानिकारक, और खुद और दूसरों के लिए खतरनाक बताया (1 कुरिं. 6:9-10) l किन्तु यीशु में वे रूपांतरित और पूर्ण बन रहे थे l और पौलुस ने इन बचे हुए लोगों को परस्पर प्रेम करने, धीरज धरने और दयालु बनने, और ईर्ष्यालु अथवा अहंकारी या अशिष्ट नहीं बनने हेतु उत्साहित किया (13:4-7) l
चर्च को इबासु बनाना है जहाँ सब, किसी भी संघर्ष या टूटेपन का सामना करते हुए, परमेश्वर और उसका प्रेम अनुभव करें l काश हम मसीहियों से यह दुखित संसार मसीह का अनुभव कर सके l
केवल परमेश्वर ही एक पाप से दाग़दार हृदय को
अनुग्रह के श्रेष्ठ कृति में रूपांतरित कर सकता है l