कितना पर्याप्त है? हम उस दिन यह प्रश्न पूछ सकते हैं जब अनेक विकसित देश खरीददारी में बिताते हैं l अमरीकी धन्यवाद अवकाश दिन के बाद, काला शुक्रवार, में अनेक दूकान सबेरे खुल जाते हैं और सस्ते में सौदा करते हैं; यह दिन दूसरे देशों में फ़ैल गया है l कुछ ग्राहक सिमित श्रोत के कारण सस्ते में खरीदना चाहते हैं l किन्तु दुर्भाग्यवश, दूसरों के लिए यह लालच ही प्रेरणा है और मोल-तोल हिंसक हो जाती है l
“उपदेशक” (सभो. 1:1) के रूप में पुराने नियम की बुद्धिमत्ता का लेखक उपभोगतावाद की सनक जिसका सामना हम दूकानों में–और अपने हृदयों में करते हैं, का उपचार बताता है l उसके अनुसार, धन प्रेमियों के पास कभी भी प्रयाप्त नहीं होगा और धन उन पर शासन करेगा l और फिर भी, वे धन विहीन मरेंगे : “जैसा वह माँ के पेट से निकला वैसा ही लौट जाएगा” (5:15) l प्रेरित पौलुस तीमुथियुस की पत्री में उपदेशक की बात दोहराता है, रूपये का लोभ सब प्रकार की बुराइयों की जड़ है, और कि हमें “संतोष सहित भक्ति” (1 तीमु. 6:6-10) का पीछा करना चाहिए है l
बहुतायत अथवा अभाव में, हम अपने परमेश्वर द्वारा आकार दिए हुए अपने हृदयों को अस्वास्थ्यकर वस्तुओं से भरने के तरीके खोज सकते हैं l किन्तु शांति और स्वास्थ्य हेतु प्रभु को देखने पर, वह इसे भलाई और प्रेम से भर देगा l
सच्चा संतोष इस संसार में किसी वस्तु पर आधारित नहीं होता l