यीशु ने कभी भी परमेश्वर के सिद्ध आदर्श को कम नहीं किया l धनी युवक को उत्तर देते समय, उसने कहा, “तुम सिद्ध बनो, जैसा तुम्हारा स्वगीय पिता सिद्ध है” (मत्ती 5:48) l सबसे महान आज्ञा के विषय पूछने वाले व्यवस्थापक से उसने कहा, “तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख” (22:37) l किसी ने इन आज्ञाओं को पूरी तरह नहीं माना l
फिर भी वही यीशु ने कोमलता से सम्पूर्ण अनुग्रह दिया l उसने व्यभिचारिणी को, क्रूस पर एक चोर को, उसे पूर्णरूपेण अस्वीकार करनेवाले एक शिष्य को, और शाऊल नामक एक व्यक्ति, जो मसीहियों का सतानेवाला बन गया था, को क्षमा किया l अनुग्रह सम्पूर्ण है और यीशु को क्रूसित करने वालों तक पहुंचा l “हे पिता, इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये जानते नहीं कि क्या कर रहे हैं” इस पृथ्वी पर कहे गए उसके कुछ अंतिम शब्द थे (लूका 23:34) l
वर्षों तक मैंने यीशु के सम्पूर्ण आदर्शों पर विचार करते समय खुद को अत्यधिक अयोग्य समझा कि मैं उस अनुग्रह के किसी-न-किसी अभिप्राय से चुक गया l एक बार, हालाँकि, इस दोहरे सन्देश को समझकर मैंने लौटकर महसूस किया कि अनुग्रह का सन्देश यीशु के जीवन और शिक्षाओं में भरपूर था l
अनुग्रह आशाहीन, ज़रूरतमंद, टूटे हुओं के लिए है, जो अपने आप में अयोग्य हैं l अनुग्रह हमारे लिए है l
यीशु ने व्यवस्था की सम्पूर्ण अनिवार्यताओं को पूरा किया
ताकि हम उस अनुग्रह की पूर्ण शांति का आनंद ले सकें l