Month: मार्च 2017

महानतम निमंत्रण

हाल ही के एक सप्ताह में, मुझे इ-मेल में अनेक निमंत्रण मिले l उनमें सेवा निवृति पर  “मुफ्त” सेमिनार, रियल एस्टेट, और जीवन बीमा को मैंने तुरंत अलग कर दिया l किन्तु एक लम्बे समय के मित्र के सम्मान में सभा के निमंत्रण ने मुझे तुरंत उत्तर देने को प्रेरित किया, “हाँ! मैं स्वीकार करता हूँ,” निमंत्रण + इच्छा = स्वीकृति l

यशायाह 55:1 बाइबिल में एक महानतम निमंत्रण है l परमेश्वर ने कठिन परिस्थितियों में पड़े अपने लोगों से कहा, “अहो सब प्यासे लोगों, पानी के पास आओ; और जिनके पास रुपया न हो, तुम भी आकर मोल लो और खाओ! दाखमधु और दूध बिन रुपये और बिना दाम ही आकर ले लो l” यह परमेश्वर के आंतरिक पोषण, गहरी आत्मिक सनतुष्टि, और जीवन का  अद्भुत पेशकश है (पद.2-3) l

यीशु का निमंत्रण बाइबिल के अंतिम अध्याय में दोहराया गया है : आत्मा और दुल्हिन दोनों कहती हैं, ‘आ!’ और सुननेवाला भी कहे, ‘आ!’ जो प्यासा हो वह आए, और जो कोई चाहे वह जीवन का जल सेंतमेंत ले” (प्रका. 22:17) l

 अक्सर हमारी सोच में अनंत जीवन का आरंभ हमारे मरने के बाद होता है l वास्तव में, हमारे द्वारा यीशु मसीह को अपना प्रभु और उद्धारकर्ता ग्रहण करने पर होता है l

परमेश्वर का उसमें अनंत जीवन खोजने का निमंत्रण सभी निमंत्रणों में सबसे महान है! निमंत्रण + इच्छा = स्वीकृति l

जीवन और मृत्यु

मैं अपनी सहेली के भाई की मृत्यु के समय उसके खाट के निकट बैठना नहीं भूल सकती; साधारण से असाधारण की मुलाकात का दृश्य l हम तीनों बैठे थे जब हमने रिचर्ड को कठिनाई से श्वास लेते देखा l हम उसके चारों ओर खड़े होकर, देखते और इंतज़ार करते हुए प्रार्थना करते रहे l जब उसने अंतिम श्वास ली, पवित्र क्षण सा महसूस हुआ; एक चालीस वर्ष के एक अद्भुत व्यक्ति की मृत्यु के समय परमेश्वर की उपस्थिति ने हमें हमारे दुःख में घेर लिया l

हमारे विश्वास के अनेक नायकों ने अपनी मृत्यु के समय परमेश्वर की विश्वासयोग्यता का अनुभव किया l जैसे, याकूब ने कहा कि वह जल्द ही “अपने लोगों के साथ मिलने पर” है (उत्प. 49:29-33) l याकूब का पुत्र युसूफ भी अपने भाइयों को अपनी निकट मृत्यु बताया : “मैं तो मरने पर हूँ,” और उनसे अपने विश्वास में दृढ़ रहने को कहा l उसने शांति का अनुभय किया, फिर भी अपने भाइयों से प्रभु पर भरोसा रखने को कहा (50:24) l

हममें से कोई भी अपनी मृत्यु का समय अथवा कारण नहीं जानते हैं, किन्तु उसके हमारे साथ रहने के लिए मदद और भरोसा रखें l हम यीशु की प्रतिज्ञा पर विश्वास करें कि वह पिता के घर में हमारे लिए रहने का एक स्थान तैयार करेगा (यूहन्ना 14:2-3) l

अग्नि परीक्षा

पिछली सर्दियों में कोलोराडो में एक प्राकृतिक अजायबघर घूमते समय, मैंने सफ़ेद पीपल[Aspen] वृक्ष की कुछ अनूठी बातें सीखीं l छरहरे, सफ़ेद धड़ वाले सफ़ेद पीपल का एक उपवन एक बीज से उग सकता है और सबकी जड़ प्रणाली एक ही हो सकती है l इनसे वृक्ष उगे अथवा नहीं, ये हज़ारों वर्षों तक छायादार जंगल में भूमि के नीचे शांत रहकर अग्नि, बाढ़, अथवा हिमस्खलन द्वारा अपने लिए जगह साफ़ होने का इंतज़ार करते हैं l प्राकृतिक आपदा से भूमि साफ़ होने के बाद, आखिरकार सूर्य की रोशनी से सफ़ेद पीपल की जड़ों से अंकुर निकलकर वृक्ष बनते हैं l

प्राकृतिक आपदा का विनाश ही सफ़ेद पीपल के लिए नया जन्म संभव करता है l याकूब लिखता है कि कठिनाई ही हमारे विश्वास की उन्नत्ति करता है l “जब तुम नाना प्रकार की परीक्षाओं में पड़ो, तो इसको पुरे आनंद की बात समझो, यह जानकार कि तुम्हारे विश्वास के परखे जाने से धीरज उत्पन्न होता है l पर धीरज को अपना पूरा काम करने दो कि तुम पूरे और सिद्ध हो जाओ, और तुम में किसी बात की घटी न रहे” (याकूब 1:2-4) l

परीक्षाओं में आनंद कठिन है, किन्तु हम इस वास्तविकता से आशा प्राप्त करते हैं कि परमेश्वर हमें कठिन स्थितियों द्वारा सिद्ध बनाएगा l सफ़ेद पीपल की तरह, विश्वास परीक्षाओं में उन्नत्ति करता है जब परमेश्वर की ज्योति के स्पर्श हेतु कठिनाई हमारे हृदयों में जगह तैयार करती है l

अच्छा फल लाना

मेरे विमान की खिड़की से दृश्य आश्चर्यजनक था : गेहूँ के पकते खेत, और दो बंजर पहाड़ों के बीच फल का बगीचा l घाटी के बीच जीवनदायक नदी से फल संभव था l  

जिस तरह भरपूर फसल साफ़ जल के सोते पर निर्भर है, मेरे जीवन में “फल” की गुणवत्ता-मेरे शब्द, कार्य, और आचरण-मेरे आत्मिक पोषण पर आधारित है l भजनकार भजन 1 में कहता है : जो “यहोवा की व्यवस्था से प्रसन्न रहता ... उस वृक्ष के समान है, जो बहती नालियों के किनारे लगाया गया है, और अपनी ऋतु में फलता है” (पद. 1-3) l और पौलुस गलातियों 5 में लिखता है कि आत्मा की अगुवाई में चलनेवाले “प्रेम, आनंद, शांति, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता, और संयम” से जाने जाते हैं (पद.22-23) l

कभी-कभी मेरी स्थितियों में मेरा दृष्टिकोण अप्रिय, अथवा मेरे कार्य और शब्द लगातार कठोर होते हैं l फल अच्छे नहीं होते, क्योंकि मैंने परमेश्वर के वचन में शांति से समय नहीं बिताया है l किन्तु उसके भरोसा में मेरे दिन जड़वत होने से, मैं अच्छा फल लाता हूँ l दूसरों के साथ हमारी बातचीत और क्रियाओं में धीरज और नम्रता होती है; शिकायत की जगह कृतज्ञता चुनना सरल है l

हम पर खुद को प्रगट करनेवाला परमेश्वर हमारी सामर्थ्य, बुद्धि, आनंद, समझ, और शांति का श्रोत है (भजन 119:28,98,111,144,165) l उसकी ओर इशारा करनेवाले शब्दों में हमारी डूबी आत्मा से, हमारे जीवनों में परमेश्वर की आत्मा का कार्य दिखेगा l

तस्वीर प्रबंधन

विंस्टन चर्चिल के 80 वें जन्मदिन पर, ब्रिटिश सरकार ने कलाकार ग्रैहम सदरलैंड से सुप्रसिद्ध राजनेता का तस्वीर बनवाया l आप मेरी तस्वीर कैसे बनाओगे? चुर्चिल ने पूछा : “स्वर्गदूत अथवा बुल डॉग?” चुर्चिल ये दो लोकप्रिय अनुभूतियाँ पसंद करता था l हालाँकि, सदरलैंड, ने जो देखा वही बनाया l  

चुर्चिल परिणाम से नाखुश था l सदरलैंड की तस्वीर में चुर्चिल कुर्सी पर अपनी ट्रेडमार्क त्यौरियाँ चढ़ाए हुए बैठा दिखा-जो सच था l आधिकारिक अनावरण पश्चात, चुर्चिल ने तस्वीर को अपने तहखाने में छिपा दिया जो बाद में गुप्त रूप से नष्ट कर दिया गया l

चर्चिल की तरह, हममें से अनेक दूसरों के समक्ष अपनी सफलता, भक्ति, सुन्दरता, अथवा शक्ति की अच्छी छवि दिखाना चाहते हैं l शायद डर से हम अपने “कुरूप” हिस्से छिपाना चाहते हैं कि वास्तविकता प्रगट होने पर हम प्रेम नहीं किये जाएंगे l

इस्राएलियों के साथ बेबीलोन के दासत्व में, सर्वाधिक बुरा हुआ l उनके पापों के कारण, परमेश्वर ने उन्हें अपने शत्रुओं से पराजित होने दिया किन्तु डरने से मना किया l वह उनको नाम से जानकर समस्त अपमानजनक स्थिति में उनके साथ था (यशा. 43:1-2) l वे उसके हाथों में सुरक्षित थे (पद.13) और “अनमोल” थे (पद.4) l उनकी कुरूपता के बावजूद, परमेश्वर उनसे प्रेम करता था l

इस सच्चाई के हमारे अन्दर समा जाने से हम दूसरों का अनुमोदन कम चाहेंगे l परमेश्वर हमें जानता है और अभी भी हमसे असीमित प्रेम करता है (इफि.3:18) l

पूर्व का पश्चिम से मिलन

जब दक्षिण-पूर्व एशिया के विद्यार्थियों की मुलाकात उत्तर अमेरिका के एक शिक्षक से हुई, अतिथि शिक्षक ने एक सबक सीखा l कक्षा को उनका प्रथम बहु-चुनाव परीक्षा देने के बाद, उसको आश्चर्य हुआ कि अनेक प्रश्न अनुत्तरित थे l जाँचा हुआ प्रश्न पत्र वापस करते हुए, उसने सलाह दी कि, अगली बार, उत्तर छोड़ने की जगह उनको अनुमान लगाना चाहिए l चकित होकर एक विद्यार्थी अपना हाथ खड़ा करके पूछा, “यदि उत्तर सही रहा तो? मैं यह मानूंगा कि मैं उत्तर जानता था जबकि यह सच नहीं है l” विद्यार्थी और शिक्षक के पास भिन्न दृष्टिकोण और तरीका था l

नया नियम काल में, पूर्व और पश्चिम की तरह ही मसीह के पास आनेवाले यहूदी और गैर यहूदी के दृष्टिकोण भिन्न थे l जल्द ही वे उपासना के दिन और मसीह के अनुयायी को क्या खाना और क्या नहीं खाना चाहिए जैसे विषयों पर असहमत थे l पौलुस ने उनसे एक ख़ास तथ्य याद रखने का आग्रह किया : हममें से कोई भी किसी पर दोष नहीं लगा सकता l

सह विश्वासियों के साथ समस्वरता के लिए, परमेश्वर हमसे चाहता है कि हम जाने कि सब उसके वचनानुसार और अपने विवेक से कार्य करने के लिए प्रभु के सामने जिम्मेदार हैं l हालाँकि, केवल वो ही हमारे हृदयों के आचरण जांच सकता है (रोमियों 14:4-7) l

आप नहीं हैं

दाऊद ने योजना बनायी, फर्नीचर अभिकल्पित किया, सामग्री इकट्ठा किया, समस्त प्रबंध किया (देखें 1 इतिहास 28:11-19) l किन्तु यरूशलेम का प्रथम मंदिर दाऊद का नहीं, सुलेमान का मंदिर कहलाता है l

क्योंकि परमेश्वर ने कहा था, “तू घर बनवाने न पाएगा” (1 इतिहास 17:4) l परमेश्वर दाऊद के पुत्र सुलेमान को मंदिर बनाने के लिए चुना था, इस इनकार का प्रतिउत्तर अनुकरणीय था l वह परमेश्वर के कार्य पर केन्द्रित रहा (पद.16-25) l उसकी आत्मा धन्वादित थी l उसने सम्पूर्ण प्रयास किया और मंदिर बनाने में योग्य लोगों से सुलेमान की मदद करवायी (देखें 1 इतिहास 22) l

बाइबिल टीकाकार जे. जी, मेक्कोन्विल ने लिखा : “अक्सर हमें स्वीकार करना होगा कि मसीही सेवा के रूप में जो कार्य हम करना पसंद करेंगे, वो नहीं है जिसके लिए हम योग्य हैं, और जिसके लिए परमेश्वर हमें बुलाया है l यह दाऊद की तरह हो सकता है, कार्य का आरंभ, जो भविष्य में और भी भव्य होगा l

दाऊद ने अपनी नहीं, परमेश्वर की महिमा खोजी l उसने परमेश्वर के मंदिर के लिए विश्वासयोग्यता से सब कुछ किया, उसके लिए एक मजबूत नींव डाला जो उसके बाद कार्य को संपन्न करनेवाला था l काश हम भी, उसी तरह, परमेश्वर का चुना हुआ कार्य धन्यवादी हृदय से करें! जाहिर है कि हमारा प्रेमी परमेश्वर  “अधिक भव्य” ही करेगा l

उसका अद्भुत चेहरा

मेरा चार वर्षीय बेटा जिज्ञासु है और निरंतर बातें करता है l मुझे उससे बातें करना पसंद है, किन्तु वह अपनी पीठ मेरी ओर करके बातें करने की खेदजनक आदत बना ली है l मैं अक्सर कहती हूँ, “मैं तुम्हारी सुन नहीं सकती-कृपया मेरी ओर देखकर बातें करो l”

कभी-कभी परमेश्वर हमसे भी यही कहता है-इसलिए नहीं कि वह सुन नहीं सकता, किन्तु हम वास्तव में “उसे देखे बिना” उससे बातचीत करना चाहते हैं l हम प्रार्थना करते समय अपने प्रश्नों में उलझकर और स्वकेन्द्रित रहकर, भूल जाते हैं किससे प्रार्थना कर रहे हैं l मेरे बेटे की तरह, हम उसकी ओर केन्द्रित हुए बिना प्रश्न करते हैं जिससे हम बातचीत कर रहे हैं l

हम, परमेश्वर कौन है और उसने क्या किया है, के विषय खुद को याद दिलाकर अपने अनेक चिंताओं को संबोधित कर सकते हैं l केवल पुनः केन्द्रित होकर, ही हम उसके चरित्र को जानकर सुख पाते हैं : कि वह प्रेमी, क्षमाशील, प्रभु, और अनुग्रहकारी है l

भजनकार का विश्वास था कि हम परमेश्वर का मुख निरंतर निहारें (भजन 105:4) l  दाऊद द्वारा अगुओं को उपासना और प्रार्थना के लिए नियुक्ति पर, उसने लोगों को परमेश्वर के चरित्र की प्रशंसा करने और उसके पूर्व विश्वासयोग्यता की चर्चा करने को उत्साहित किया (1 इतिहास 16:8-27) l

परमेश्वर का खूबसूरत चेहरा निहारने पर, हम सामर्थ्य और सुख पाते हैं जो हमें हमारे अनुत्तरित प्रश्नों के मध्य भी संभालता हैं l

सुख का पलना

मेरी सहेली ने मुझे अपने चार दिन की बेटी को गोद में लेने का सौभाग्य दिया l बच्चावह मेरे गोद में आने के बाद ही हलचल करने लगा l मैंने उसे दुलारा, अपने गाल उसके सिर से लगाया, और उसे चुप करने के लिए हिलाते हुए एक गीत गुनगुनाने लगी l इन प्रयासों के साथ, दस वर्षों के अपने लालन-पालन अनुभव के बाद भी, मैं उसे शांत न कर सकी l मैंने उसे उसकी अधीर माँ के बाहों में डालने तक वह अत्यंत परेशान रही l तुरन ही वह शांत हो गई; उसका रोना बंद हो गया और उसकी बेचैनी उसके भरोसेमंद सुरक्षा में तब्दील हो गई l  मेरी सहेली अपनी बेटी को गोद लेना और उसकी परेशानी दूर करना जानती थी l

परमेश्वर अपने बच्चों को माता की तरह सुख देता है : कोमल, भरोसेमंद, और बच्चे को शांत करने में चिन्ताशील l हमारे थकित अथवा परेशान होने पर, वह हमें अपनी बाहों में उठाता है l हमारा पिता और सृष्टिकर्ता होकर, वह हमें निकटता से जानता है l “जिसका मन तुझ में धीरज धरे हुए है, उसकी तू पूर्ण शांति के साथ रक्षा करता है, क्योंकि वह तुझ पर भरोसा रखता है” (यशा. 26:3) l

जब हमें संसार का भारी बोझ दबाए, हम इस ज्ञान में सुख पाते हैं कि वह प्रेमी अभिभावक की तरह हमें अर्थात् अपने बच्चों को सुरक्षित रखता और उनके लिए लड़ता है l