मेरे विमान की खिड़की से दृश्य आश्चर्यजनक था : गेहूँ के पकते खेत, और दो बंजर पहाड़ों के बीच फल का बगीचा l घाटी के बीच जीवनदायक नदी से फल संभव था l
जिस तरह भरपूर फसल साफ़ जल के सोते पर निर्भर है, मेरे जीवन में “फल” की गुणवत्ता-मेरे शब्द, कार्य, और आचरण-मेरे आत्मिक पोषण पर आधारित है l भजनकार भजन 1 में कहता है : जो “यहोवा की व्यवस्था से प्रसन्न रहता … उस वृक्ष के समान है, जो बहती नालियों के किनारे लगाया गया है, और अपनी ऋतु में फलता है” (पद. 1-3) l और पौलुस गलातियों 5 में लिखता है कि आत्मा की अगुवाई में चलनेवाले “प्रेम, आनंद, शांति, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता, और संयम” से जाने जाते हैं (पद.22-23) l
कभी-कभी मेरी स्थितियों में मेरा दृष्टिकोण अप्रिय, अथवा मेरे कार्य और शब्द लगातार कठोर होते हैं l फल अच्छे नहीं होते, क्योंकि मैंने परमेश्वर के वचन में शांति से समय नहीं बिताया है l किन्तु उसके भरोसा में मेरे दिन जड़वत होने से, मैं अच्छा फल लाता हूँ l दूसरों के साथ हमारी बातचीत और क्रियाओं में धीरज और नम्रता होती है; शिकायत की जगह कृतज्ञता चुनना सरल है l
हम पर खुद को प्रगट करनेवाला परमेश्वर हमारी सामर्थ्य, बुद्धि, आनंद, समझ, और शांति का श्रोत है (भजन 119:28,98,111,144,165) l उसकी ओर इशारा करनेवाले शब्दों में हमारी डूबी आत्मा से, हमारे जीवनों में परमेश्वर की आत्मा का कार्य दिखेगा l
परमेश्वर का आत्मा उसके लोगों में बसता है, ताकि उनके द्वारा कार्य कर सके l