Month: अप्रैल 2017

हमेशा प्रेम किया गया

कोई भी दिन किसी न किसी तरह का अपमान, उपेक्षा और अनादर सहे बिना शायद बिताना असंभव है l कभी-कभी हम खुद के साथ भी ऐसा करते हैं l

दाऊद के शत्रुओं से धमकी देने, डराने और निंदा करने की बू आ रही थी l आत्म-सम्मान और भलाई का उसका भाव अचानक से धराशायी हो गया था (भजन 4:1-2) l उसने अपनी “सकेती” से निकलने के लिए सहायता मांगी l

तब दाऊद ने याद किया, “यह जान रखो कि यहोवा ने भक्त को अपने लिए अलग कर रखा है” (पद.3) l अंग्रेजी के विभिन्न अनुवाद दाऊद के दृढ़ उक्ति का पूर्ण भाव “भक्त” बताते हैं l यहाँ पर इब्रानी शब्द, हेसेद (hesed)  का शब्दशः सन्दर्भ परमेश्वर के प्रेम के वाचा से है और उसका अर्थ हो सकता है “जिनको परमेश्वर हमेशा, हमेशा, हमेशा के लिए प्रेम करेगा l”

यहाँ पर वह बात है जो हमें याद रखना है : उस प्रिय पुत्र की तरह हमसे सदा  प्रेम किया जाता है, हम विशेष रूप से अलग किये गए हैं l उसने हमें अनंतकाल के लिए अपनी संतान होने के लिए बुलाया है l

निराश होने की जगह, हम अपने पिता से प्राप्त प्रेम को याद करें जो हमें मुफ्त में मिला है l हम उसके अति प्रिय बच्चे हैं l अंत निराशा नहीं किन्तु शांति और आनंद है (पद.7-8) l वह हमें त्यागता नहीं, और वह कभी भी हमसे प्रेम करना नहीं छोड़ेगा l

जब सुबह होती है

जब हम म्युनिक के बाहर ग्रामीण विश्रामगृह में रात बिताने पहुंचे तो काफी रात हो चुकी थी l हम अपना बाल्कनी वाला आरामदायक कमरा पाकर खुश थे, यद्यपि एक कष्टकर कुहरे से अँधेरे में देखना असंभव था l किन्तु कुछ घंटे बाद सूर्योदय होने पर, धुंध फटने लगा l तब जो रात के समय बहुत छुपा हुआ था अब हम देख सकते थे-एक सम्पूर्ण रमणीय दृश्य-शांत और हरा-भरा चारागाह, घास चरती भेड़ें जिनके गलों में बजती छोटी घंटियाँ, और आकाश में सफ़ेद बादल जो और बड़ी, रोयेंदार भेड़ों की तरह दिखाई देती थीं!

कभी-कभी जीवन निराशा के भारी कुहरे से ढक जाता है l हमारी स्थिति अत्यधिक अंधकारमय दिखाई देने के कारण आशा जाती रहती है l किन्तु जैसे सूरज से कुहरा फट जाता है, परमेश्वर में हमारा विश्वास सन्देह का शंका हटा देता है l इब्रानियों 11 में विश्वास की परिभाषा “आशा की हुयी वस्तुओं का निश्चय, और अनदेखी वस्तुओं का प्रमाण है” (पद.1) l परिच्छेद आगे हमें नूह का विश्वास याद दिलाता है, जो “दिखाई न देनेवाली बातों के विषय चेतावनी पाया,” फिर भी परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारी रहा (पद.7) l और अब्राहम जो परमेश्वर के मार्गदर्शन में चला-यद्यपि वह अपना गंतव्य नहीं जानता था (पद.8) l

यद्यपि हमनें उसे नहीं देखा है और हर समय उसकी उपस्थिति का आभास नहीं करते हैं, परमेश्वर हमेशा उपस्थित रहता है और हमारे अंधकारमय रातों में भी लिए चलेगा l  

क्रोध का विकल्प

एक दिन पर्थ, ऑस्ट्रेलिया में फिओन मुलहॉलैंड ने देखा कि उसकी कार नहीं थी l उसने जाना कि गलती से उसने निषिद्ध क्षेत्र में कार खड़ी कर दी थी इसलिए वह खींच ली गयी थी l स्थिति की जांच के बाद, अर्थात्, खींचकर ले जाने और पार्किंग जुर्माना 600 डॉलर देने के बाद, मुलहॉलैंड निराश हुआ, किन्तु उसने निर्णय लिया कि वह अपनी कार को छुड़ाने के लिए सम्बंधित व्यक्ति पर क्रोधित नहीं होगा l उसने क्रोध न दर्शाते हुए उस स्थिति के विषय एक हास्य कविता लिखकर गाड़ी-यार्ड के कार्यकर्त्ता को पढ़कर सुनाया l कार्यकर्त्ता ने कविता पसंद की, और संभवतः भद्दी बातचीत टल गयी l

नीतिवचन की पुस्तक सिखाती है, “मुक़दमें से हाथ उठाना, ... महिमा ठहरती है” (20:3) l झगड़ा वह घर्षण है जो या तो अन्दर ही अन्दर उबलती रहती है अथवा खुले में फूट जाती है जब दो लोग एक मत नहीं होते l

परमेश्वर ने दूसरों के साथ शांतिपूर्ण ढंग से रहने के लिए संसाधन दिए हैं l उसका वचन  आश्वस्त करता है कि क्रोध तो करो किन्तु पाप ने करो (इफि.4:26) l उसकी आत्मा  हमें क्रोध की चिंगारियों को बुझाने की ताकत देता है जो हमें परेशान करनेवालों पर टूट पड़ने से हमें रोकती हैं l और उत्तेजित होने पर परमेश्वर ने हमें अनुसरण के लिए अपना उदाहरण  दिया है (1 पतरस 2:23) l वह दयालु, अनुग्रहकारी, विलम्ब से कोप करनेवाला और अति करुणामय है l

भाषा सीखना

जमाइका के एक छोटे चर्च में मण्डली के समक्ष खड़े होकर मैंने उत्तम तरीके से प्रान्तीय भाषा में बोलने का प्रयास किया, “वा ग्वान, जमाइका ?” प्रतिक्रिया मेरी अपेक्षा से बेहतर था, जब मुकराहट और हर्षध्वनि ने मेरा अभिवादन किया l

वास्तव में, मैंने पटोइस [पा-त्वा] भाषा में केवल सामान्य शुभकामनाएं दी थी, “क्या हो रहा है?,” किन्तु उन्होंने सुना कि मैंने बोला, “मैं आपकी भाषा बोलना पसंद करता हूँ l” निःसन्देह, मैं पटोइस भाषा में आगे और नहीं बोल सकता था, किन्तु एक द्वार अवश्य ही खुल गया था l

प्रेरित पौलुस अथेने के लोगों के सामने खड़े होकर, उनको जता दिया कि वह उनकी संस्कृति से अवगत् था l उसने उनको बताया कि उसने एक “अनजाने ईश्वर के लिए” उनकी वेदी देखी थी, और उसने उनके एक कवि का सन्दर्भ भी दिया l निःसंदेह सभी ने यीशु के पुनरुत्थान सम्बंधित सन्देश पर विश्वास नहीं किया, किन्तु कुछ ने कहा, “यह बात हम तुझ से फिर कभी सुनेंगे” (प्रेरितों 17:32) l

दूसरों के साथ यीशु और उसके द्वारा प्रदत्त उद्धार के विषय बातें करते समय, वचन हमें अपने को दूसरों में निवेश करने को कहता है-उनकी भाषा सीखना, जैसे कि वह सुसमाचार बताने के लिए एक द्वार खोलना है (1 कुरिं. 9:20-23 भी देखें) l

जब हम “वा ग्वान?” दूसरों के जीवन में खोज लेते हैं, दूसरों को बताना सरल होगा जो परमेश्वर ने हमारे जीवनों में किया है l

कोई स्पर्श के योग्य

नियमित आने-जाने वालों ने एक तनावपूर्ण क्षण में एक मार्मिक निर्णय के साक्षी बने l एक 70 वर्षीय वृद्ध महिला ने हाथ बढ़ाकर कोमलता से एक युवक को स्पर्श किया जिसकी तेज़ आवाज़ और अशांत करनेवाले शब्द दूसरे यात्रियों के लिए चौंकानेवाले थे l महिला की दयालुता ने उस व्यक्ति को शांत कर दिया जो रोते हुए ट्रेन के फर्श पर बैठ गया l उसने कहा, “दादी, धन्यवाद,” और उठकर चला गया l महिला ने बाद में बताया कि वह भयभीत थी l किन्तु वह बोली, “मैं एक माँ हूँ और उसे किसी की स्पर्श की ज़रूरत थी l” जबकि बेहतर निर्णय उसे दूरी बनाए रखने का कारण देती, उसने प्रेम का जोखिम उठाया l

यीशु इस तरह की करुणा समझता था l उसने हतोत्साहित देखनेवालों का पक्ष नहीं लिया जब एक परेशान, कुष्ठ लोगी चंगा होने उसके निकट आया l वह अन्य धार्मिक अगुवों की तरह असहाय नहीं था-लोग जो उस कुष्ठ रोगी को गाँव में कुष्ठ रोग लाने के लिए केवल उसकी निंदा करते (लेव्य. 13:45-46) l इसके बदले, यीशु ने उसे छूकर चंगा किया जिसे शायद वर्षों से कोई नहीं छूआ था l

धन्यवाद हो, यीशु उस व्यक्ति के लिए और हमारे लिए, वह देने आया जो कोई भी व्यवस्था नहीं दे सकता था-उसके हाथ और हृदय का स्पर्श l

हार न मानें

बॉब फोस्टर, जो 50 वर्ष से अधिक से मेरा सलाहकार और मित्र है, मुझे छोड़ा नहीं है l मेरे कठिन समय में भी, उसकी स्थिर मित्रता और प्रोत्साहन ने, मुझे आगे बढ़ने में मदद की l

हम दोनों अक्सर अपने को किसी ज़रूरतमंद की मदद करते पाते हैं l किन्तु जब हमें तुरंत सुधार नहीं दिखाई देता, हमारा संकल्प कमजोर हो सकता है और हम आखिरकार हार मान सकते हैं l हमें यह मालूम पड़ता है कि जिसे हम तात्कालिक बदलाव सोचते थे, वह चलनेवाली प्रक्रिया बन गयी है l

प्रेरित पौलुस हमसे जीवन की बाधाओं और संघर्षों में परस्पर मदद करने में धीरज रखने को कहता है l वह यह लिखते हुए, “तूम एक दूसरे का भार उठाओ” और “इस प्रकार मसीह की व्यवस्था को पूरी करो” (गला.6:2), हमारे परिश्रम की तुलना एक किसान के कार्य, समय, और इंतज़ार से करता है जो फसल के लिए ठहरा हुआ है l

हम कब तक उनके लिए प्रार्थना और उनको मदद करते रहेंगे जिनसे हम प्रेम करते हैं? “हम भले कामों में साहस न छोड़ें, क्योंकि यदि हम ढीले न हों तो ठीक समय पर कटनी काटेंगे” (पद.9) l हम कब तक मदद करें? “जहाँ तक अवसर मिले हम सब के साथ भलाई करें, विशेष करके विश्वासी भाइयों के साथ” (पद.10) l

प्रभु आज हमसे उस पर भरोसा करने, दूसरों के प्रति विश्वासयोग्य, निरंतर प्रार्थना करने, और हार न मानने को उत्साहित करता है!

छोटी बातें

मेरी सहेली ग्लोरिया मुझे उत्तेजित होकर पुकारी l डॉक्टर से नियोजित भेंट के अलावा वह अपने घर से निकलने में असमर्थ थी l इसलिए मैं समझ गयी वह क्यों मुझसे कहने के लिए खुश थी, “मेरे पुत्र ने अभी-अभी मेरे कंप्यूटर में स्पीकर्स जोड़ा है, इसलिए अब मैं चर्च जा सकती हूँ!” अब वह अपने चर्च उपासना का सीधा प्रसारण सुन सकती थी l उसने परमेश्वर की भलाई की अत्यधिक चर्चा करी और “वह उपहार जो मेरा बेटा कभी मुझे दे सकता था!”

ग्लोरिया मुझे धन्यवादी हृदय रखना सिखाती है l उसके अनेक सीमाओं के बावजूद, वह छोटी बातों के लिए भी धन्यवादित है-सूर्यास्त, मददगार परिजन और मित्र, परमेश्वर के साथ शांत पल, अपने अपार्टमेन्ट में अकेले रहने की क्षमता l उसने परमेश्वर को जीवन भर उसकी ज़रूरतों को पूरा करते देखा है, और वह हर मिलनेवालों से परमेश्वर के विषय बताती है l

हम भजन 116 के रचयिता की कठिनाइयों को नहीं जानते हैं l कुछ बाइबिल टीकाकारों के अनुसार संभवतः बीमारी थी क्योंकि उसने कहा, “मृत्यु की रस्सियाँ मेरे चारों ओर थीं” (पद.3) l किन्तु अपने प्रति प्रभु का अनुग्रह और करुणा देखकर वह धन्यादित है जब उसे “बलहीन किया गया” (पद.5-6) l

जब हम बलहीन होते हैं, ऊपर देखना कठिन है l फिर भी ऐसा करने पर, हम देखते हैं कि परमेश्वर हमारे जीवनों में सभी अच्छे उपहारों का देनेवाला है-बड़ा और छोटा-और हम धन्यवाद देना सीखते हैं l

छोटा होता पियानो

लगातार तीन वर्षों तक मेरा बेटा पियानो वादन में भाग लिया l पिछले वर्ष, मैंने उसे मंच पर अपना पियानो सजाते देखा l उसने दो गानें बजाए और फिर मेरे निकट बैठकर मेरे कानों में फुसफुसाया, “माँ, इस वर्ष पियानो छोटा था l” मैं बोली, “नहीं, तुमने वही पियानो बजाया l तुम बड़े हो गए हो! तुम बढ़ गए हो l”

शारीरक उन्नति की तरह, आत्मिक उन्नत्ति, समय के साथ धीरे-धीरे होती है l यह निरंतर चलनेवाली प्रक्रिया है जिसमें यीशु की तरह बनना शामिल है, और हमारे मन के नए हो जाने से हम रूपांतरित होते हैं l

हमारे अन्दर पवित्र आत्मा के कार्य से, हम अपने जीवनों में पाप को पहचान जाते हैं l परमेश्वर की महिमा करने की इच्छा में, हम बदलना चाहते हैं l कभी-कभी हम सफल होते हैं, किन्तु दूसरे समयों में, हम प्रयास करते और हार जाते हैं l कुछ नहीं बदलते देखकर हम निरास होते हैं l हम पराजय को उन्नत्ति की कमी कहते हैं, जबकि अक्सर यह प्रक्रिया के मध्य में होने का प्रमाण है l

आत्मिक उन्नत्ति में पवित्र आत्मा, हमारे बदलने की इच्छा, और समय शामिल है l जीवन के किसी ख़ास बिंदु पर, हम मुड़कर देखेंगे कि हम उन्नत्ति किये हैं l परमेश्वर हमें यह विश्वास करने का भरोसा दे कि “जिसने [हम]में अच्छा काम आरम्भ किया है, वही उसे यीशु मसीह के दिन तक पूरा करेगा” (फिलि. 1:6) l

हमेशा सुननेवाला

पिताजी कम बोलते थे l सेना में वर्षों तक ड्यूटी के दौरान सुनने की शक्ति कम होने पर वे सुनने का यंत्र लगाते थे l एक दिन जब मेरी माँ और मैं उनकी अपेक्षा से अधिक समय तक बातें करते रहे, उन्होंने मज़ाक किया, “शांति और आराम हेतु, मुझे केवल यही करना है l” उन्होंने सुननेवाले यंत्र बंद करके, सिर के पीछे दोनों हाथों को जोड़कर, धीरे से मुस्कराते हुए आँखें बंद कर लीं l

हम हँस दिए l जहाँ तक उनसे मतलब था, बातचीत ख़त्म हो चुकी थी!

मेरे पिता की उस दिन की क्रिया ने मुझे याद दिलाया कि परमेश्वर हमसे कितना भिन्न है l वह हमेशा हमारी सुनता है l हम बाइबिल की एक सबसे छोटी प्रार्थना से यह समझ जाते हैं l एक दिन फारस के राजा, अर्तक्षत्र का सेवक, नहेम्याह, राजा के समक्ष उदास दिखा l कारण पूछने पर, डरते हुए, नहेम्याह ने स्वीकारा कि उसके पुरखाओं का पराजित शहर, यरूशलेम, उजाड़ पड़ा है l नहेम्याह ने याद किया, “राजा ने मुझसे पूछा, ‘फिर तू क्या मांगता है?’ ”तब मैंने स्वर्ग के परमेश्वर से प्रार्थना करके , राजा से कहा ... l” (नहे. 2:4-5) l

परमेश्वर ने नहेम्याह की क्षणिक प्रार्थना सुन ली l इस प्रार्थना से यरूशलेम के लिए नहेम्याह की अन्य प्रार्थनाओं को परमेश्वर का करुणामय उत्तर मिला l उस क्षण, अर्तक्षत्र ने शहर के पुनर्निर्माण सम्बंधित नहेम्याह का निवेदन सुन लिया l

क्या यह जानना सुखकर नहीं कि परमेश्वर हमारी छोटी-बड़ी प्रार्थनाएँ सुनता है?