पिताजी कम बोलते थे l सेना में वर्षों तक ड्यूटी के दौरान सुनने की शक्ति कम होने पर वे सुनने का यंत्र लगाते थे l एक दिन जब मेरी माँ और मैं उनकी अपेक्षा से अधिक समय तक बातें करते रहे, उन्होंने मज़ाक किया, “शांति और आराम हेतु, मुझे केवल यही करना है l” उन्होंने सुननेवाले यंत्र बंद करके, सिर के पीछे दोनों हाथों को जोड़कर, धीरे से मुस्कराते हुए आँखें बंद कर लीं l

हम हँस दिए l जहाँ तक उनसे मतलब था, बातचीत ख़त्म हो चुकी थी!

मेरे पिता की उस दिन की क्रिया ने मुझे याद दिलाया कि परमेश्वर हमसे कितना भिन्न है l वह हमेशा हमारी सुनता है l हम बाइबिल की एक सबसे छोटी प्रार्थना से यह समझ जाते हैं l एक दिन फारस के राजा, अर्तक्षत्र का सेवक, नहेम्याह, राजा के समक्ष उदास दिखा l कारण पूछने पर, डरते हुए, नहेम्याह ने स्वीकारा कि उसके पुरखाओं का पराजित शहर, यरूशलेम, उजाड़ पड़ा है l नहेम्याह ने याद किया, “राजा ने मुझसे पूछा, ‘फिर तू क्या मांगता है?’ ”तब मैंने स्वर्ग के परमेश्वर से प्रार्थना करके , राजा से कहा … l” (नहे. 2:4-5) l

परमेश्वर ने नहेम्याह की क्षणिक प्रार्थना सुन ली l इस प्रार्थना से यरूशलेम के लिए नहेम्याह की अन्य प्रार्थनाओं को परमेश्वर का करुणामय उत्तर मिला l उस क्षण, अर्तक्षत्र ने शहर के पुनर्निर्माण सम्बंधित नहेम्याह का निवेदन सुन लिया l

क्या यह जानना सुखकर नहीं कि परमेश्वर हमारी छोटी-बड़ी प्रार्थनाएँ सुनता है?