लगातार तीन वर्षों तक मेरा बेटा पियानो वादन में भाग लिया l पिछले वर्ष, मैंने उसे मंच पर अपना पियानो सजाते देखा l उसने दो गानें बजाए और फिर मेरे निकट बैठकर मेरे कानों में फुसफुसाया, “माँ, इस वर्ष पियानो छोटा था l” मैं बोली, “नहीं, तुमने वही पियानो बजाया l तुम बड़े हो गए हो! तुम बढ़ गए हो l”

शारीरक उन्नति की तरह, आत्मिक उन्नत्ति, समय के साथ धीरे-धीरे होती है l यह निरंतर चलनेवाली प्रक्रिया है जिसमें यीशु की तरह बनना शामिल है, और हमारे मन के नए हो जाने से हम रूपांतरित होते हैं l

हमारे अन्दर पवित्र आत्मा के कार्य से, हम अपने जीवनों में पाप को पहचान जाते हैं l परमेश्वर की महिमा करने की इच्छा में, हम बदलना चाहते हैं l कभी-कभी हम सफल होते हैं, किन्तु दूसरे समयों में, हम प्रयास करते और हार जाते हैं l कुछ नहीं बदलते देखकर हम निरास होते हैं l हम पराजय को उन्नत्ति की कमी कहते हैं, जबकि अक्सर यह प्रक्रिया के मध्य में होने का प्रमाण है l

आत्मिक उन्नत्ति में पवित्र आत्मा, हमारे बदलने की इच्छा, और समय शामिल है l जीवन के किसी ख़ास बिंदु पर, हम मुड़कर देखेंगे कि हम उन्नत्ति किये हैं l परमेश्वर हमें यह विश्वास करने का भरोसा दे कि “जिसने [हम]में अच्छा काम आरम्भ किया है, वही उसे यीशु मसीह के दिन तक पूरा करेगा” (फिलि. 1:6) l