Month: फरवरी 2017

अंधकार में दबी हुई हँसी

वाशिंगटन पोस्ट  अख़बार में “Tech Titans’ Latest Project: मृत्यु को चुनौती दें, नामक एक लेख में अराइना छा ने मानव जीवन को अनिश्चित काल तक बढ़ाने पर पीटर थील और दूसरे तकनिकी बादशाहों के प्रयास बताती है l वे इस परियोजना पर अरबों खर्च करना चाहते हैं l  

उन्होंने थोड़ी देर कर दी l मृत्यु हार चुकी है! यीशु ने कहा, “पुनरुत्थान और जीवन मैं हूँ; जो कोई मुझ पर विश्वास करता है वह यदि मर भी जाए तौभी जीएगा, और जो कोई जीवित है और मुझ पर विश्वास करता है, वह अनंतकाल तक न मरेगा” (यूहन्ना 11:25-26) l यीशु हमें आश्वस्त करता है कि उसमें विश्वास करनेवाले किसी भी परिस्थिति में कभी नहीं मरेंगे l

बात यह है, हमारे शरीर मर जाएंगे-और यह बदला नहीं जा सकता l किन्तु हमारे व्यक्तित्व के रोमांचक हिस्से, सोच, विवेक बुद्धि, स्मरण करना, प्रेम करना, जिसे हम “मुझको, खुद, और मैं” कहते हैं कभी नहीं मरेंगे l

और यहाँ सर्वोत्तम है : यह एक उपहार है! आपको केवल यीशु का उद्धार स्वीकारना है l इस धारणा के विषय सी.एस. ल्युईस अपनी सोच में इसे “अंधकार में दबी हुई हँसी” कहते हैं-अर्थात् उत्तर इतना सरल है l

कुछ लोगों के अनुसार, “यह अत्यधिक  सरल है l” अच्छा, तो मैं कहता हूँ, यदि आपके जन्म से पूर्व परमेश्वर ने आपसे प्रेम किया और उसकी इच्छा है कि आप हमेशा उसके साथ रहें, तो वह इसे कठिन क्यों बनेएगा?

अदृश्यता की अंगूठी

यूनानी दार्शनिक प्लेटो (c. 427-c. 348 ई.पु.) मानव हृदय के अँधेरे भाग पर ज्योति चमकाने का काल्पनिक तरीका खोज लिया था l उसने एक चरवाहे की कहानी बतायी जिसे अचानक भूमि की गहराई में दबी एक सोने की अंगूठी मिली l एक दिन भूकंप से पहाड़ के निकट एक कब्र खुल गई और अंगूठी चरवाहे को दिखाई दी l संयोग से उसे यह भी ज्ञात हुआ कि उस जादुई अंगूठी को पहननेवाला इच्छा से अदृश्य हो सकता था l अदृश्यता पर विचार करते हुए, प्लेटो ने एक प्रश्न किया : यदि लोग को पकड़े जाने और दंड पाने का भय नहीं होता, क्या वे गलत करने से परहेज करते?

यूहन्ना के सुसमाचार में यीशु इस विचार को एक भिन्न दिशा में ले जाता है l वहां पर, अच्छा चरवाहा, यीशु, ऐसे हृदयों की बात करता है जो अँधेरे की आड़ में अपने कार्यों को छिपाते हैं (यूहन्ना 3:19-20) l वह हमारे छिपाने की इच्छा पर हमारा ध्यान हमें दोषी ठहराने के लिए नहीं करता है, किन्तु उसके द्वारा उद्धार पाने के लिए (पद.17) l हृदयों का चरवाहा होकर, वह हमारे मानव स्वभाव के सबसे ख़राब हिस्से को भी प्रगट करके हमें बताता है कि परमेश्वर हमसे कितना अधिक प्रेम करता है (पद.16) l

परमेश्वर अपनी करुणा में हमें अंधकार से निकलकर ज्योति में उसका अनुसरण करने के लिए आमंत्रित करता है l

सम्पूर्ण पहुँच

कुछ वर्ष पूर्व, मेरा एक मित्र मुझे प्रथम गोल्फ प्रतियोगिता देखने के लिए आमंत्रित किया l पहली बार देखने के कारण, मेरी अपेक्षाएं शून्य थीं l वहाँ पहुँचकर, मैं उपहार, सूचना, और गोल्फ के मैदान का नक्शा पाकर चकित हुआ l लेकिन सबसे अच्छी बात यह थी कि हमें 18 वीं ग्रीन (गोल्फ खेल में एक विशेष बिंदु/स्थान) के पीछे विशिष्ट दीर्घा में पहुँच मिली, जहाँ मुफ्त भोजन और बैठने का स्थान था l यद्यपि मैं इस आतिथ्य दीर्घा में स्वयं नहीं पहुँच सकता था l मुख्य व्यक्ति मेरा मित्र था; केवल उसके द्वारा मुझे पूर्ण पहुँच मिली l

खुद पर भरोसे से हम, नाउम्मीदी में परमेश्वर से दूर रहते l किन्तु यीशु, हमारा दंड लेकर, अपना जीवन और परमेश्वर तक पहुँच देता है l प्रेरित पौलुस ने लिखा, “[परमेश्वर की इच्छा थी कि] अब कलीसिया के द्वारा, परमेश्वर का विभिन्न प्रकार का ज्ञान ... प्रगट किया जाए” (इफि. 3:10) l इस ज्ञान ने यहूदी और गैरयहूदी का मसीह में मेल कराया, जिसने हमारे लिए परमेश्वर पिता तक पहुँच दी l “[यीशु पर] विश्वास करने से साहस और भरोसे के साथ परमेश्वर के निकट आने का अधिकार है” (पद.12) l

यीशु में भरोसा करने पर, हमें सबसे महान पहुँच मिलती है-परमेश्वर तक पहुँच जो हमसे प्रेम करता है और हमसे सम्बन्ध रखना चाहता है l

सम्पूर्ण मन से!

कालिब “सम्पूर्ण मन” का व्यक्ति था l वह और यहोशू मूसा और लोगों को प्रतिज्ञात देश की छानबीन रिपोर्ट देनेवाले बारह-व्यक्तियों की टोह लेनेवाली टीम का हिस्सा थे l कालिब ने कहा, “हम अभी ... उस देश को अपना कर लें; क्योंकि निःसंदेह हम में ऐसा करने की शक्ति है” (गिनती 13:30) l किन्तु टीम के बाकी दस लोगों ने परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं के बाद भी, इसे असंभव कहकर केवल बाधाएं देखीं (पद. 31-33) l

दस लोगों द्वारा लोगों को हताश करके परमेश्वर के विरुद्ध बड़बड़ाने से उन्हें निर्जन-स्थान में चालीस वर्ष भटकना पड़ा l किन्तु कालिब डटा रहा l परमेश्वर ने कहा, “इस कारण कि ... कालिब के साथ और ही आत्मा है, और उसने ... मेरा अनुसरण किया है, मैं उसको उस देश में ... पहुँचाऊँगा, और उसका वंश उस देश का अधिकारी होगा” (गिनती 14:24) l पैंतालिस वर्ष बाद परमेश्वर ने 85 वर्षीय कालिब को, हेब्रोन नगर दिया “क्योंकि वह इस्राएल के परमेश्वर यहोवा का पूरी रीति से अनुगामी था” (यहोशू 14:14) l

शताब्दियों बाद एक व्यवस्थापक ने यीशु से पूछा, “कौन सी आज्ञा बड़ी है?” यीशु ने उत्तर दिया, “ ‘तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन ... सारे प्राण, ... सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख l’ बड़ी और मुख्य आज्ञा तो यही है” (मत्ती 22:35-38) l

आज, कालिब हमारे मन के सम्पूर्ण प्रेम, भरोसा, और समर्पण के योग्य परमेश्वर में अपने भरोसे से हमें प्रेरित कर रहा है l

“क्या है” का देश

2002 में अपनी  सत्रह-वर्षीय बेटी मेलेस्सा को एक कार दुर्घटना में खोने के इतने वर्षों बाद भी, मैं खुद को कभी-कभी “क्या अगर” के संसार में जाता हुआ महसूस करता हूँ l दुःख में, जून की उस शाम की उस दुखद घटना के विषय पुनः कल्पना करना सरल है, कि-यदि सब ठीक हो जाता-मेलेस्सा सुरक्षित घर लौटती होती l

यद्यपि, वास्तविकता में, हममें से किसी के लिए “क्या अगर” के देश में होना अच्छा स्थान नहीं है l यह पछतावा का, दूसरी बार अनुमान लगाने का, और नाउम्मीदी का स्थान है l यद्यपि दुःख वास्तविक है और शोक बना रहता है, जीवन बेहतर है और परमेश्वर महिमान्वित होता है जब हम “क्या है” के संसार में बसते हैं l

उस संसार में, हम आशा, प्रोत्साहन, और सुख पाते हैं l हमारे पास निश्चित आशा  है (1 थिस्स. 4:13)-ख़ास भरोसा-कि क्योंकि मेलेस्सा यीशु से प्रेम करती थी वह ऐसे स्थान में है “जो बहुत अच्छा है” (फ़िलि. 1:23) l हमारे पास समस्त सुख के परमेश्वर की सहायक उपस्थिति है (2 कुरिं. 1:3) l हमारे पास “संकट में अति सहज से [मिलनेवाली] परमेश्वर की [सहायता] है (भजन 46:1) l और अक्सर सहविश्वासियों का प्रोत्साहन हमारे साथ है l

हम सब जीवन के दुःख से दूर रहना चाहते हैं l किन्तु कठिन समय आने पर, परमेश्वर पर भरोसा करने से हमें मदद मिलती है, जो क्या है के देश में हमारी निश्चित आशा है l

आगे बढ़ते रहें

द अमेजिंग रेस  मेरा एक पसंदीदा टेलेविज़न कार्यक्रम है l इस रियलिटी शो में, दस जोड़ों को एक दूसरे देश में भेजा जाता है जहाँ उनको रेल, बस, कार, बाइक, और पैदल चलकर एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक अगली चुनौती के लिए पहुंचना होता है l समापन बिंदु पर पहले पहुँचने वाले जोड़े को दस लाख डॉलर पुरस्कार मिलता है l

प्रेरित पौलुस मसीही जीवन की तुलना एक दौड़ से करके समापन रेखा तक नहीं पहुंचना स्वीकारता है l “उसने कहा, “हे भाइयों, मेरी भावना यह नहीं कि मैं पकड़ चुका हूँ; परन्तु केवल यह एक काम करता हूँ कि जो बातें पीछे रह गई हैं उनको भूल कर, आगे की बातों की ओर बढ़ता हुआ, निशाने की ओर चौड़ा चला जाता हूँ, ताकि वह इनाम पाऊं” (फ़िलि. 3:13-14) l पौलुस मुड़कर पीछे नहीं देखा और अपने पिछले पराजयों को उसे दोष की भावना से दबाने नहीं दिया, न ही अपने वर्तमान सफलताओं से खुद को प्रयासशीन बनने दिया l वह यीशु की तरह और भी बनने के लिए लक्ष्य की ओर दौड़ता गया l

हम भी दौड़ में हैं l हमारी पिछली असफलताओं अथवा सफलताओं के बावजूद, हम आगे यीशु की तरह बनने के अपने अंतिम लक्ष्य की ओर दौड़ते रहें l हम किसी सांसारिक इनाम के लिए नहीं दौड़ रहे, किन्तु हमेशा उसका आनंद लेने के अंतिम लक्ष्य के लिए l

संपूर्ण अनुग्रह

यीशु ने कभी भी परमेश्वर के सिद्ध आदर्श को कम नहीं किया l धनी युवक को उत्तर देते समय, उसने कहा, “तुम सिद्ध बनो, जैसा तुम्हारा स्वगीय पिता सिद्ध है” (मत्ती 5:48) l सबसे महान आज्ञा के विषय पूछने वाले व्यवस्थापक से उसने कहा, “तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख” (22:37) l किसी ने इन आज्ञाओं को पूरी तरह नहीं माना l

फिर भी वही यीशु ने कोमलता से सम्पूर्ण अनुग्रह दिया l उसने व्यभिचारिणी को, क्रूस पर एक चोर को, उसे पूर्णरूपेण अस्वीकार करनेवाले एक शिष्य को, और शाऊल नामक एक व्यक्ति, जो मसीहियों का सतानेवाला बन गया था, को क्षमा किया l अनुग्रह सम्पूर्ण है और यीशु को क्रूसित करने वालों तक पहुंचा l “हे पिता, इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये जानते नहीं कि क्या कर रहे हैं” इस पृथ्वी पर कहे गए उसके कुछ अंतिम शब्द थे (लूका 23:34) l

वर्षों तक मैंने यीशु के सम्पूर्ण आदर्शों पर विचार करते समय खुद को अत्यधिक अयोग्य समझा कि मैं उस अनुग्रह के किसी-न-किसी अभिप्राय से चुक गया l एक बार, हालाँकि, इस दोहरे सन्देश को समझकर मैंने लौटकर महसूस किया कि अनुग्रह का सन्देश यीशु के जीवन और शिक्षाओं में भरपूर था l

अनुग्रह आशाहीन, ज़रूरतमंद, टूटे हुओं के लिए है, जो अपने आप में अयोग्य हैं l अनुग्रह हमारे लिए है l

वाइरल सुसमाचार

बोस्टन के नार्थईस्टर्न यूनिवर्सिटी में वायरल विषय वस्तु प्रोजेक्ट यह अध्ययन कर रहें है कि 1800 के दशक में मुद्रित विषय अखबारों द्वारा-उस काल का सोशल मीडिया नेटवर्क-कैसे फैलता था l यदि एक लेख पुनः 50 से अधिक बार छपती थी, वे उसे उस ओद्योगिक काल में “वाइरल” मानते थे l स्मिथसोनियन  पत्रिका में लिखते हुए, ब्रिट पीटरसन ने पाया कि यीशु के किस अनुयायी की मृत्यु विश्वास के कारण कैसे हुई, एक उन्नीसवीं-शताब्दी के खबर लेख कम-से-कम 110 भिन्न प्रकाशनों में दिखाई दिया l

थिस्सलुनीके के मसीहियों को लिखते हुए प्रेरित पौलुस ने, उन्हें यीशु का साहसिक और आनंदित साक्षी बनने के लिए सराहाना की l  “तुम्हारे यहाँ से न केवल मकिदुनिया और अखया में प्रभु का वचन सुनाया गया, पर तुम्हारे विश्वास की जो परमेश्वर पर है, हर जगह ऐसी चर्चा फ़ैल गई है” (1 थिस्स.1:8) l यीशु मसीह द्वारा रूपांतरित इन लोगों के जीवन द्वारा सुसमाचार वायरल हो गया l कठिनाई और सताव के बावजूद, वे शांत न रह सके l

हम प्रभु को जाननेवाले करुणामय हृदयों, मददगार हाथों, और ईमानदार शब्दों द्वारा मसीह में क्षमा और अनंत जीवन को फैलाते हैं l सुसमाचार हमें और हमसे मिलने वालों के जीवन रूपांतरित करता है l

आज भी हम सभों द्वारा सुसमाचार फैलता जाए!

नदी किनारे का वृक्ष

यह वह वृक्ष था जिससे लोग ईर्ष्या करते l नदी के सामने भूमि में बढ़ता हुआ, इसे मौसम की सूचना, विध्वंशकारी तापमान, अथवा अनिश्चित भविष्य की चिंता नहीं थी l उसे नदी द्वारा पोषण और ठंडक मिलती थी, वह सूर्य की ओर अपनी टहनियाँ फैलाए और भूमि को जड़ों से पकड़े हुए, अपनी पत्तियों द्वारा हवा को स्वच्छ करते हुए, और सूर्य से ज़रुरतमंदों को छाया देकर अपने दिन बिताता था l 

इसके विपरीत, नबी यिर्मयाह एक अधमरे पेड़ की ओर इशारा करता है (यिर्म. 17:6) l जब वर्षा रूक गयी और तपन ने धरती को धुल में बदल दिया, अधमरा पेड़ मुरझा कर, किसी को भी छाया और फल न दे सका l

नबी तंदुरुस्त वृक्ष की तुलना एक अधमरे पेड़ से क्यों करता है? मिस्र के दास स्थलों से आश्चर्यजनक छुटकारे के समय के बाद क्या हुआ, नबी लोगों को याद दिलाना चाहता था l निर्जन प्रदेश में चालीस वर्षों तक, उन्होंने नदी के निकट लगे वृक्ष की तरह जीवन बिताया (2:4-6) l फिर भी अपने प्रतिज्ञात देश की समृद्धि में वे अपनी कहानी भूल गए; उन्होंने खुद पर और अपने बनाए देवताओं पर भरोसा किया (पद.7-8), और मदद के लिए मिस्र जाने की लालसा की (42:14) l

इसलिए यिर्मयाह के द्वारा परमेश्वर, भुलक्कड़ इस्राएलियों और हमसे प्रेमपूर्ण अपील करता है कि हम उस पर आशा और भरोसा रखकर उस अधमरे पेड़ की तरह नहीं वरन् तंदुरुस्त वृक्ष की तरह बने l