मैं कैंसर(leukemia) पीड़ित माँ की सेवा कर सकी, परमेश्वर को धन्यवाद l दवाइयों के दुष्प्रभाव से उन्होंने इलाज बंद कर दी l “मैं और कष्ट नहीं झेल सकती,” वह बोली l “मैं अंतिम दिनों में अपने परिवार के साथ आनंदित रहना चाहती हूँ l परमेश्वर जानता है कि मैं घर जाने को तैयार हूँ l”
मुझे अपने स्वर्गिक पिता, महावैध के आश्चर्यकर्म पर भरोसा था l किन्तु मेरी माँ की प्रार्थना का उत्तर हाँ में देने के लिए उसे मुझसे नहीं कहना होता l रोते हुए मैंने हार मान ली, “प्रभु, आपकी इच्छा पूरी हो l”
जल्द ही, यीशु ने मेरी माँ को अकष्टकर अनंत में बुला लिया l
हम पतित संसार में यीशु की वापसी तक दुःख सहेंगे (रोमि.8:22-25) l हमारा पापी स्वभाव, सीमित दृष्टि, और दुःख का भय प्रार्थना करने को कुरूप कर सकता है l धन्यवाद हो, “मनों का जांचनेवाला जानता है कि आत्मा की मनसा क्या है? (पद.27) l वह हमें याद दिलाता है कि परमेश्वर से प्रेम रखनेवालों के लिए सब बातें मिलकर भलाई उत्पन्न करती हैं (पद.28), उस समय भी जब किसी के लिए उसकी हाँ हमारे लिए दुःख भरा नहीं हो l
हम उसके महान उद्देश्य हेतु अपना छोटा भाग स्वीकार करके, मेरी माँ का नारा दोहरा सकते हैं : “परमेश्वर भला है, बस l उसकी इच्छा में मुझे शांति है l” प्रभु की भलाईयों में भरोसा रखकर, हम प्रार्थना के उत्तर में उसकी इच्छा और महिमा देखते हैं l
यीशु का अनुसरण करने का उसका निमंत्रण स्वीकार करने पर,
हमारा सम्पूर्ण दिशा बदल जाता है l