मेरी बेटी ने शीघ्र उत्तर की आशा से एक सहेली को एक सन्देश भेजा l उसके फोन मेसेज सिस्टम ने उसको बताया कि प्राप्तकर्ता ने उसका सन्देश पढ़ लिया है, इसलिए वह व्याकुलता से उत्तर का इंतज़ार करती रही l महज़ क्षण गुज़र गए, फिर भी वह निराश होकर देरी के लिए अपनी चिढ़ पर शोक करती रही l चिढ़चिढ़ाहट चिंता बन गई; उसने सोचा कि उनके बीच में कोई समस्या होगी l आखिरकार उत्तर से मेरी बेटी निश्चिन्त हुई कि उनके सम्बन्ध ठीक हैं l उसकी सहेली प्रश्न का उत्तर खोज रही थी l
पुराने नियम का दानिय्येल नबी भी उत्तर के लिए व्याकुल था l महायुद्ध के डरावने दर्शन के बाद दानिय्येल उपवास और दीन प्रार्थना के साथ परमेश्वर को खोजा (10:3,12) l तीन सप्ताह तक उत्तर नहीं आया (पद.2,13) l अंत में, एक स्वर्गदूत ने उसे निश्चित किया कि “उसी दिन तेरे वचन सुने गए l” उसके बीच, स्वर्गदूत उसकी प्रार्थनाओं के पक्ष में लड़ता रहा l यद्यपि पहले दानिय्येल अनिभिज्ञ था, उसकी प्रथम प्रार्थना और स्वर्गदूत के आने के बीच परमेश्वर उन इक्कीस दिनों तक कार्यरत था l
यह भरोसा कि परमेश्वर प्रार्थना सुनता है (भजन 40:1), हमारे समयानुसार उत्तर नहीं मिलने पर हम व्याकुल होते हैं l हम उसकी देखभाल पर शक करने लगते हैं l फिर भी दानिय्येल का अनुभव हमें याद दिलाता है कि जाहिर नहीं होने पर भी परमेश्वर अपने प्रेमियों के लिए कार्य करता है l
परमेश्वर अपने लोगों के पक्ष में कार्य करता है l