सहानुभूतिपूर्ण हृदय
एक आमोद-प्रमोद उद्यान में हम सात जन एक संगीत प्रदर्शन देखने गए l एक ही पंक्ति में बैठने की इच्छा से हम एक दूसरे के साथ बैठना चाहे l किन्तु एक महिला हमारे बीच आ गई l मेरी पत्नी के टोकने पर, उसने जल्दी से उत्तर दिया, “अति दुर्भाग्य,” और वह अपने दो साथियों के साथ उस पंक्ति में बैठ गई l
हमारे चार जन से एक पंक्ति पीछे हम तीन बैठे थे l मेरी पत्नी, सु ने देखा कि उस महिला के साथ एक असमर्थ व्यस्क था और इसलिए वह उसकी ज़रूरत का ख्याल रखते हुए साथ बैठना चाहती थी l अचानक, हम शांत हो गए l सु बोली, “कल्पना करें कि ऐसी भीड़भाड़ में उसके लिए कितनी कठिनाई होगी l” हाँ, शायद वह महिला कठोर थी l किन्तु हम तो सहानुभूतिपूर्ण उत्तर दे सकते थे l
हर जगह, हमारा सामना लोगों से होता है जिन्हें करुणा चाहिए l शायद प्रेरित पौलुस के ये शब्द हमें अपने चारों ओर के लोगों को एक भिन्न दृष्टि से देखने में सहायता करेंगे-लोग जिनको अनुग्रह का कोमल स्पर्श चाहिए l “इसलिए परमेश्वर के चुने हुओं के समान जो पवित्र और प्रिय हैं, बड़ी करुणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण करो” (कुलु. 3:12) l और हम “एक दूसरे की सह [लें]” (पद.13) l
करुणा दिखाते हुए, हम उसकी ओर इशारा करेंगे जिसने हम पर अपने अनुग्रह और करुणा भरा हृदय उड़ेल दिया l
दृश्य के पीछे
मेरी बेटी ने शीघ्र उत्तर की आशा से एक सहेली को एक सन्देश भेजा l उसके फोन मेसेज सिस्टम ने उसको बताया कि प्राप्तकर्ता ने उसका सन्देश पढ़ लिया है, इसलिए वह व्याकुलता से उत्तर का इंतज़ार करती रही l महज़ क्षण गुज़र गए, फिर भी वह निराश होकर देरी के लिए अपनी चिढ़ पर शोक करती रही l चिढ़चिढ़ाहट चिंता बन गई; उसने सोचा कि उनके बीच में कोई समस्या होगी l आखिरकार उत्तर से मेरी बेटी निश्चिन्त हुई कि उनके सम्बन्ध ठीक हैं l उसकी सहेली प्रश्न का उत्तर खोज रही थी l
पुराने नियम का दानिय्येल नबी भी उत्तर के लिए व्याकुल था l महायुद्ध के डरावने दर्शन के बाद दानिय्येल उपवास और दीन प्रार्थना के साथ परमेश्वर को खोजा (10:3,12) l तीन सप्ताह तक उत्तर नहीं आया (पद.2,13) l अंत में, एक स्वर्गदूत ने उसे निश्चित किया कि “उसी दिन तेरे वचन सुने गए l” उसके बीच, स्वर्गदूत उसकी प्रार्थनाओं के पक्ष में लड़ता रहा l यद्यपि पहले दानिय्येल अनिभिज्ञ था, उसकी प्रथम प्रार्थना और स्वर्गदूत के आने के बीच परमेश्वर उन इक्कीस दिनों तक कार्यरत था l
यह भरोसा कि परमेश्वर प्रार्थना सुनता है (भजन 40:1), हमारे समयानुसार उत्तर नहीं मिलने पर हम व्याकुल होते हैं l हम उसकी देखभाल पर शक करने लगते हैं l फिर भी दानिय्येल का अनुभव हमें याद दिलाता है कि जाहिर नहीं होने पर भी परमेश्वर अपने प्रेमियों के लिए कार्य करता है l
जब हाँ का अर्थ नहीं हो
मैं कैंसर(leukemia) पीड़ित माँ की सेवा कर सकी, परमेश्वर को धन्यवाद l दवाइयों के दुष्प्रभाव से उन्होंने इलाज बंद कर दी l “मैं और कष्ट नहीं झेल सकती,” वह बोली l “मैं अंतिम दिनों में अपने परिवार के साथ आनंदित रहना चाहती हूँ l परमेश्वर जानता है कि मैं घर जाने को तैयार हूँ l”
मुझे अपने स्वर्गिक पिता, महावैध के आश्चर्यकर्म पर भरोसा था l किन्तु मेरी माँ की प्रार्थना का उत्तर हाँ में देने के लिए उसे मुझसे नहीं कहना होता l रोते हुए मैंने हार मान ली, “प्रभु, आपकी इच्छा पूरी हो l”
जल्द ही, यीशु ने मेरी माँ को अकष्टकर अनंत में बुला लिया l
हम पतित संसार में यीशु की वापसी तक दुःख सहेंगे (रोमि.8:22-25) l हमारा पापी स्वभाव, सीमित दृष्टि, और दुःख का भय प्रार्थना करने को कुरूप कर सकता है l धन्यवाद हो, “मनों का जांचनेवाला जानता है कि आत्मा की मनसा क्या है? (पद.27) l वह हमें याद दिलाता है कि परमेश्वर से प्रेम रखनेवालों के लिए सब बातें मिलकर भलाई उत्पन्न करती हैं (पद.28), उस समय भी जब किसी के लिए उसकी हाँ हमारे लिए दुःख भरा नहीं हो l
हम उसके महान उद्देश्य हेतु अपना छोटा भाग स्वीकार करके, मेरी माँ का नारा दोहरा सकते हैं : “परमेश्वर भला है, बस l उसकी इच्छा में मुझे शांति है l” प्रभु की भलाईयों में भरोसा रखकर, हम प्रार्थना के उत्तर में उसकी इच्छा और महिमा देखते हैं l