हमारी पौत्री के स्कूल बैंड संगीत गोष्ठी, में 11 और 12 वर्ष के बच्चों को एक साथ ख़ूबसूरती से बजाते देख मैं प्रभावित हुआ l हर एक अकेले प्रदर्शित करके उपलब्धि प्राप्त नहीं कर सकते थे जो उन्होंने साथ मिलकर किया l सभी साजों ने अपनी भागीदारी निभायी और परिणाम था मधुर संगीत!
रोमियों को पौलुस ने लिखा, “हम जो बहुत हैं, मसीह में एक देह होकर आपस में एक दूसरे के अंग हैं l जबकि उस अनुग्रह के अनुसार जो हमें दिया गया है, हमें भिन्न-भिन्न वरदान मिले हैं” (रोमियों 12:5-6) l पौलुस द्वारा वर्णित वरदानों में भविष्यवाणी, सेवा, सिखाना, उपदेश देना, दान देना, अगुवाई, उत्साहित करना और दया है (पद.7-8) l प्रत्येक वरदान हर एक के लाभ के लिए स्वतंत्र रूप से उपयोग किया जाए (1 कुरिं. 12:7) l
संगीत मण्डली में की एक परिभाषा है “बनावट अथवा योजना में सहमति; संयुक्त क्रिया; तालमेल अथवा सामंजस्य l” यीशु मसीह द्वारा हम जो उसकी संतान हैं, के लिए प्रभु की योजना यही है l “भाईचारे के प्रेम से एक दूसरे से स्नेह रखो; परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो” (पद.10) l लक्ष्य सहभागिता है, प्रतियोगिता नहीं l
एक अर्थ में, हम प्रतिदिन देखनेवाले और सुननेवाले संसार के “मंच पर हैं l” परमेश्वर की संगीत मण्डली में कोई अकेला गायक नहीं है, किन्तु सभी वाद्य विशेष हैं l हम दूसरों के साथ एकता में अपने योगदान देकर संगीत को सर्वोत्तम बनाते हैं l
परमेश्वर के वादक समूह (orchestra) में कोई एकल गायक नहीं है l